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________________ १३० अनुयोगद्वारसूत्र किसी कर्तव्य कार्य को करने के लिए शिष्य गुरु से आज्ञा ले और वे उस कार्य को न करने की आज्ञा दें और कार्य अत्यावश्यक हो तो कार्य प्रारंभ करने के पूर्व पुनः गुरु से आज्ञा ले, यह बताने के लिए आप्रच्छना के अनन्तर प्रतिप्रच्छना का विन्यास किया है। गुरु की आज्ञा प्राप्त कर अशनादि लाने वाला शिष्य उसके परिभोग के लिए अन्य साधुओं को सादर आमंत्रित करे, इस बात को बताने के लिए प्रतिप्रच्छना के बाद छंदना का पाठ रखा है। गृहीत आहारादि में ही छन्दना होती है, परन्तु अगृहीत आहारादि में निमंत्रणा होती है, इसीलिए छन्दना के बाद निमंत्रणा का विन्यास किया है। इच्छाकार से लेकर निमंत्रणा तक की सभी समाचारी गुरुमहाराज की निकटता के बिना नहीं की जा सकती है। इसका संकेत करने के लिए सबसे अंत में उपसंपत् का उपन्यास किया है। समाचारी-आनुपूर्वी का यह स्वरूप है। अब आनुपूर्वी के अंतिम भेद भावानुपूर्वी का कथन करते हैं। भावानुपूर्वी प्ररूपणा २०७. (१) से किं तं भावाणुपुव्वी ? भावाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३। [२०७-१ प्र.] भगवन् ! भावानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०७-१ उ.] आयुष्मन् ! भावानुपूर्वी तीन प्रकार की है। यथा—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी। (२) से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी उदइए १ उवसमिए २ खतिए ३ खओवसमिए ४ पारिणामिए ५ सन्निवातिए ६ । से तं पुव्वाणुपुवी । [२०७-२ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०७-२ उ.] आयुष्मन् ! १. औदयिकभाव, २. औपशमिकभाव, ३. क्षायिकभाव, ४. क्षायोपशमिकभाव, ५. पारिणामिकभाव, ६. सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास करना पूर्वानुपूर्वी है। (३) से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी सन्निवातिए ६ जाव उदइए १ । सं ते पच्छाणुपुव्वी । [२०७-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०७-३ उ.] आयुष्मन् ! सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त भावों की व्युत्क्रम से स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है। (४) से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुल्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमनब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं भावाणुपुव्वी । से तं आणुपुव्वी त्ति पदं समत्तं ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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