SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्या चारों अनुयोगों में होती थी, वहां चारों में से अमुक अनुयोग के आधार पर व्याख्या करने का यहां पर अभिप्राय है। आर्यरक्षित से पूर्व अपृथक्त्वानुयोग प्रचलित था, उसमें प्रत्येक सूत्र की व्याख्या चरण-करण, धर्म, गणित और द्रव्य की दृष्टि से की जाती थी। यह व्याख्यापद्धति बहुत ही क्लिष्ट और स्मृति की तीक्ष्णता पर अवलम्बित थी। आर्यरक्षित के १. दुर्बलिका पुष्यमित्र, २. फल्गुरक्षित, ३. विन्ध्य और ४. गोष्ठामाहिल ये चार प्रमुख शिष्य थे। विन्ध्यमुनि महान् प्रतिभासम्पन्न शीघ्रग्राही मनीषा के धनी थे। आर्यरक्षित शिष्यमण्डली को आगम वाचना देते, उसे विन्ध्यमुनि उसी क्षण ग्रहण कर लेते थे। अतः उनके पास अग्रिम अध्ययन के लिए बहुत-सा समय अवशिष्ट रहता। उन्होंने आर्यरक्षित से प्रार्थना की मेरे लिए अध्ययन की पृथक् व्यवस्था करें। आचार्य ने प्रस्तुत महनीय कार्य के लिए महामेधावी दुर्बलिका पुष्यमित्र को नियुक्त किया। अध्यापनरत दुर्बलिका पुष्यमित्र ने कुछ समय के पश्चात् आर्यरक्षित से निवेदन किया—आर्य विन्ध्य को आगम वाचना देने से मेरे पठित पाठ के पुनरावर्तन में बाधा उपस्थित होती है। इस प्रकार की व्यवस्था से मेरी अधीत पूर्वज्ञान की राशि विस्मृत हो जायेगी। आर्यरक्षित ने सोचा महामेधावी शिष्य की भी यह स्थिति है तो आगमज्ञान का सुरक्षित रहना बहुत ही कठिन है। दूरदर्शी आर्यरक्षित ने गम्भीरता से चिन्तन कर जटिल व्यवस्था को सरल बनाने हेतु आगम-अध्ययन क्रम को चारों अनुयोगों में विभक्त किया। यह महत्वपूर्ण कार्य दशपुर में वीरनिर्वाण सं. ५९२, वि.सं. १२२ के आसपास सम्पन्न हुआ था। यह वर्गीकरण विषय सादृश्य की दृष्टि से किया गया है। प्रस्तुत वर्गीकरण करने के बावजूद भी यह भेद-रेखा नहीं खींची जा सकती कि अन्य आगमों में अन्य अनुयोगों का वर्णन नहीं है। उदाहरण के रूप में, उत्तराध्ययनसूत्र में धर्मकथा के अतिरिक्त दार्शनिक तथ्य भी पर्याप्त मात्रा में हैं। भगवतीसूत्र तो अनेक विषयों का विराट् सागर है। आचारांग आदि में भी अनेक विषयों की चर्चाएँ हैं। कुछ आगमों को छोड़कर अन्य आगमों में चारों अनुयोगों का सम्मिश्रण है। यह जो वर्गीकरण हुआ है वह स्थूल दृष्टि को लेकर हुआ है। व्याख्याक्रम की दृष्टि से यह वर्गीकरण अपृथक्त्वानुयोग और पृथक्त्वानुयोग के रूप में दो प्रकार का है। हम यहां पर चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग, द्रव्यानुयोग और धर्मकथानुयोग पर चिन्तन न कर केवल अनुयोगद्वारसूत्र पर चिन्तन करेंगे। मूल आगमों में नन्दी के पश्चात् अनुयोगद्वार का नाम आता है। नन्दी और अनुयोगद्वार ये दोनों आगम चूलिका सूत्र के नाम से पहचाने जाते हैं। चूलिका शब्द का प्रयोग उन अध्ययनों या ग्रन्थों के लिए होता है जिनमें अवशिष्ट विषयों का वर्णन या वर्णित विषयों का स्पष्टीकरण किया गया हो। दशवैकालिक और महानिशीथ के अन्त में भी चूलिकाएं-चूलाएं-चूड़ाएं प्राप्त होती हैं। चूलिकाओं को वर्तमान युग की भाषा में ग्रन्थ का परिशिष्ट कह सकते हैं। नन्दी और अनुयोगद्वार भी आगम साहित्य के अध्ययन के लिए परिशिष्ट का कार्य ४२. (क) देविंदवंदिएहि महाणुभावोहि रक्खियजेहिं । जुगुमासज्ज विभत्तो, अणुयोगो तो कओ चउहा ॥ चत्तारि अणुयोग चरणधम्मगणियाणुयोग य । दव्वियणुयोगे तहा जहक्कम महिड्डिया ॥ —अभिधानराजेन्द्रकोश (ख) कालिय सुयं च इसिभासिआई तइओ अ सूरपन्नती । सव्वोअ दिट्ठिवाओ चउत्थओ होइ अणुओगो ॥ —आवश्यकनियुक्ति १२४ [१५]
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy