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करते हैं। जैसे पांच ज्ञानरूप नन्दी मंगलस्वरूप है वैसे ही अनुयोगद्वारसूत्र भी समग्र आगमों को और उसकी व्याख्याओं को समझने में कुंजी सदृश है। ये दोनों आगम एक दूसरे के परिपूरक हैं। आगमों के वर्गीकरण में इनका स्थान चूलिका में है। जैसे भव्य मन्दिर शिखर से अधिक शोभा पाता है वैसे ही आगममन्दिर भी नन्दी और अनुयोगद्वार रूप शिखर से अधिक जगमगाता है।
हम पूर्व पंक्तियों में यह बता चुके हैं अनुयोग का अर्थ व्याख्या या विवेचन है। भद्रबाहु स्वामी ने आवश्यकनियुक्ति में अनुयोग के अनुयोग-नियोग, भाषा-विभाषा और वार्तिक ये पर्याय बताये हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में," संघदासगणि ने बृहत्कल्पभाष्य में इन सभी पर्यायों का विवरण प्रस्तुत किया है। यह सत्य है कि जो पर्याय दिये गये हैं, वे सभी पर्याय पूर्णरूप से एकार्थक नहीं हैं, किन्तु अनुयोगद्वार के जो विविध प्रकार हैं, उन्हें ही पर्याय लिखने में आया है।
आगमप्रभावक श्री पुण्यविजयजी महाराज ने अपनी अनुयोगद्वार की विस्तृत प्रस्तावना में अंग साहित्य में अनुयोग की चर्चा कहां-कहां पर आई है, इस पर प्रमाण पुरस्सर प्रकाश डाला है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि श्रमण भगवान् महावीर के समय सूत्र की जो व्याख्यापद्धति थी उसी व्याख्यापद्धति का विकसित और परिपक्वरूप हमें अनुयोगद्वारसूत्र में सहज रूप से निहारने को मिलता है। उसके पश्चात् लिखे गये जैन आगमों के व्याख्यासाहित्य में अनुयोगद्वार की ही शैली अपनाई गई। श्वेताम्बर ग्रन्थों में ही नहीं दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में भी इस शैली के सुन्दर संदर्शन होते हैं।
___ अनुयोगद्वार में द्रव्यानुयोग की प्रधानता है। उसमें चार द्वार हैं, १८९९ श्लोकप्रमाण उपलब्ध मूल पाठ हैं। १५२ गद्य सूत्र हैं और १४३ पद्य सूत्र हैं। ___अनुयोगद्वार में प्रथम पंचज्ञान से मंगलाचरण किया गया है। उसके पश्चात् आवश्यक-अनुयोग का उल्लेख है। इससे पाठक को सहज ही यह अनुमान होता है कि इसमें आवश्यकसूत्र की व्याख्या होगी, पर ऐसा नहीं है। इसमें अनुयोग के द्वार अर्थात् व्याख्याओं के द्वार उपक्रम आदि का ही विवेचन किया गया है। विवेचन या व्याख्यापद्धति कैसी होनी चाहिए यह बताने के लिए आवश्यक को दृष्टान्त के रूप में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत सूत्र में केवल आवश्यक, श्रुत, स्कन्ध, अध्ययन नामक ग्रन्थ की व्याख्या, उसके छह अध्ययनों में पिण्डार्थ (अर्थाधिकार का निर्देश), उनके नाम और सामायिक शब्द की व्याख्या दी है। आवश्यकसूत्र के पदों की व्याख्या नहीं है। इससे स्पष्ट है कि अनुयोगद्वार मुख्यरूप से अनुयोग की व्याख्याओं के द्वारों का निरूपण करने वाला ग्रन्थ है—आवश्यकसूत्र की व्याख्या करने वाला नहीं। ___आगमसाहित्य में अंगों के पश्चात् सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान आवश्यकसूत्र को दिया गया है, क्योंकि प्रस्तुत सूत्र में निरूपित सामायिक से ही श्रमणजीवन का प्रारम्भ होता है। प्रतिदिन प्रातः सन्ध्या के समय श्रमणजीवन की
४३. अणुयोगो अणियोगो भास विभासा य वत्तियं चेव ।
एते अणुओगस्स तु णामा एगट्ठिया पंच ॥ -आव. नि. गाथा १२६, विशे. १३८२, वृ. १८७ ४४. विशेषावश्यकभाष्य १४१८, १४१९, १४२० ४५. बृहत्कल्पभाष्य गा. १९५, १९६, १९८, १९९ ४६. नंदिसुत्तं-अणुओगद्दाराई प्रस्तावना पुण्यविजयजी म., पृ. ३७-३९
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