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________________ १२८ अनुयोगद्वारसूत्र समचतुरस्रसंस्थान समस्त लक्षणों से युक्त होने से मुख्य है और शेष में यथाक्रम लक्षणों से हीनता होने के कारण अशुभता है। इस प्रकार संस्थानानुपूर्वी की वक्तव्यता पूर्ण हुई। अब शेष रहे दो आनुपूर्वीभेदों में से पहले समाचारी आनुपूर्वी का विचार करते हैं। समाचारी-आनुपूर्वी प्ररूपणा २०६. (१) से किं तं सामायारीआणुपुव्वी ? सामायारीआणुपुच्ची तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—-पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३ । [२०६-१ प्र.] भगवन् ! समाचारी-आनुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०६-१ उ.] आयुष्मन् ! समाचारी-आनुपूर्वी तीन प्रकार की है—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी और ३. अनानुपूर्वी। (२) से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुव्वाणुपुवी इच्छा १ मिच्छा २ तहक्कारो ३ आवसिया ४ य निसीहिया ५ । आपुच्छणा ६ य पडिपुच्छा ७ छंदणा ८ य निमंतणा । उवसंपया य काले १० सामायारी भवे दसविहा ३ ॥ १६॥ से तं पुव्वाणुपुव्वी । [२०६-२ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०६-२ उ.] आयुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है १. इच्छाकार, २. मिथ्याकार, ३. तथाकार, ४. आवश्यकी, ५. नैषेधिकी, ६. आप्रच्छना, ७. प्रतिप्रच्छना, ८. छंदना, ९. निमंत्रणा, १०. उपसंपद्। यह दस प्रकार की समाचारी है। उक्त क्रम से इन पदों की स्थापना करना पूर्वानुपूर्वी है। (३) से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी उवसंपया १० जाव इच्छा १ । से तं पच्छाणुपुव्वी । [२०६-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का स्वरूप क्या है ? [२०६-३ उ.] आयुष्मन् ! उपसंपद् से लेकर इच्छाकार पर्यन्त व्युत्क्रम से स्थापना करना समाचारी सम्बन्धी पश्चानुपूर्वी है। (४) से किं तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं सामायारीआणुपुव्वी ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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