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आनुपूर्वीनिरूपण
१२७ अनानुपूर्वी हैं।
इस प्रकार से संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप जानना चाहिए। विवेचन— सूत्र में संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है। संस्थान, आकार और आकृति, ये समानार्थक शब्द हैं। इन संस्थानों की परिपाटी संस्थानानुपूर्वी कहलाती है।
यद्यपि ये संस्थान जीव और अजीव सम्बन्धी होने से दो प्रकार के हैं, तथापि यहां जीव से संबद्ध और उसमें भी पंचेन्द्रिय जीव सम्बन्धी ग्रहण किये गये हैं।
ये संस्थान समचतुरस्र आदि के भेद से छह प्रकार के हैं। इनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं
१.समचतुरस्त्रसंस्थान— 'समा चतस्रोऽस्रयो यत्र तत् समचतुरस्रम्।' यह इसकी व्युत्पत्ति है। तात्पर्य यह हुआ कि जिस संस्थान में नाभि से ऊपर के और नीचे के समस्त अवयव सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अपने-अपने प्रमाण से युक्त हों हीनाधिक न हों, वह समचतुरस्रसंस्थान है। इस संस्थान में शरीर के नाभि से ऊपर और नीचे के सभी अंग-प्रत्यंग प्रमाणोपेत होते हैं। आरोह-परिणाह (उतार-चढ़ाव) अनुरूप होता है। इस संस्थान वाला शरीर अपने अंगुल से एक सौ आठ अंगुल ऊंचाई वाला होता है, यह संस्थान सर्वोत्तम होता है।
समस्त संस्थानों में मुख्य, शुभ होने से इस संस्थान का प्रथम उपन्यास किया है।
२. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान- न्यग्रोध के समान विशिष्ट प्रकार के शरीराकार को न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान कहते हैं। न्यग्रोध वटवृक्ष का नाम है। इसके समान जिसका मंडल (आकार) हो अर्थात् जैसे न्यग्रोधवटवृक्ष ऊपर में संपूर्ण अवयवों वाला होता है और नीचे वैसा नहीं होता। इसी प्रकार यह संस्थान भी नाभि से ऊपर विस्तार वाला और नाभि से नीचे हीन प्रमाण वाला होता है। इस प्रकार का संस्थान न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान कहलाता है।
३. सादिसंस्थान—'आदिना सह यद् वर्तते तत् सादि।' अर्थात् नाभि से नीचे का उत्सेध नाम का देहभाग यहां आदि शब्द से ग्रहण किया गया है। अतएव नाभि से नीचे का भाग जिस संस्थान में विस्तार वाला और नाभि से ऊपर का भाग हीन होता है, वह संस्थान सादि है। यद्यपि समस्त शरीर आदि सहित होते हैं, तो भी यहां सादि विशेषण यह बतलाने के लिए प्रयुक्त किया है इस संस्थान में नाभि के नीचे के अवयव आद्य संस्थान जैसे होते हैं, नाभि से ऊपर के अवयव वैसे नहीं होते।
४.कुब्जसंस्थान—जिस संस्थान में सिर, ग्रीवा, हाथ, पैर तो उचित प्रमाण वाले हों, किन्तु हृदय, पीठ और उदर प्रमाण-विहीन हों, वह कुब्जसंस्थान है। अर्थात् पीठ, पेट आदि में कूबड़ हो ऐसा संस्थान कुब्जसंस्थान कहलाता है।
५. वामनसंस्थान- जिस संस्थान में वक्षस्थल, उदर और पीठ लक्षणयुक्त प्रमाणोपेत हों और बाकी के अवयव लक्षणहीन हों, उसका नाम वामनसंस्थान है। यह संस्थान कुब्ज से विपरीत होता है। सामान्य व्यवहार में ऐसे संस्थान वाले को बौना या वामनिया कहा जाता है।
६. हुंडसंस्थान- जिस संस्थान में समस्त शरीरावयव प्रायः लक्षणविहीन हों। किन्हीं-किन्हीं आचार्यों ने संस्थनों के क्रम में वामन को चौथा और कुब्ज को पांचवां स्थान दिया है।