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अनुयोगद्वारसूत्र भंग अनानुपूर्वी हैं।
विवेचन- प्रस्तुत में सप्रभेद गणनानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है।
गिनती करने की पद्धति को गणनानुपूर्वी कहते हैं। 'एक' यह गणना का आदि स्थान है और इसके बाद क्रमशः पूर्व-पूर्व को दस गुणा करते जाने पर उत्तर-उत्तर की दस, सौ, हजार आदि की संख्याएं प्राप्त होती हैं।
इनमें पूर्वानुपूर्वी एक से प्रारंभ होती है और पश्चानुपूर्वी इसके विपरीत उत्कृष्ट से प्रारंभ कर जघन्यतम गणनास्थान में पूर्ण होती है। अनानुपूर्वी में जघन्य और उत्कृष्ट पद रूप अनुक्रम एवं व्युत्क्रम छोड़ करके यथेच्छ क्रम का अनुसरण किया जाता है।
अब क्रमप्राप्त संस्थानानुपूर्वी का स्वरूप बतलाते हैं। संस्थानानुपूर्वी प्ररूपणा
२०५. (१) से किं तं संठाणाणुपुव्वी ? संठाणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३। [२०५-१ प्र.] भगवन् ! संस्थानापूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०५-१ उ.] आयुष्मन् ! संस्थानापूर्वी के तीन प्रकार हैं—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी। (२) से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ।
पुव्वाणुपुव्वी समचउरंसे १ णग्गोहमंडले २ सादी ३ खुजे ४ वामणे ५ हुंडे ६ । से तं पुव्वाणुपुव्वी ।
[२०५-२ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं ?
[२०५-२ उ.] आयुष्मन् ! १. समचतुरस्रसंस्थान, २. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, ३. सादिसंस्थान, ४. कुब्जसंस्थान, ५. वामनसंस्थान, ६. हुंडसंस्थान के क्रम से संस्थानों के विन्यास करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं।
(३) से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी हुंडे ६, जाव समचउरंसे १ । से तं पच्छाणुपुव्वी [२०५-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[२०५-३ उ.] आयुष्मन् ! हुंडसंस्थान से लेकर समचतुरस्रसंस्थान तक व्युत्क्रम से संस्थानों का उपन्यास करना पश्चानुपूर्वी है।
(४) से किं तं अणाणुपुव्वी ?
अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए छयगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणे । से तं अणाणुपुव्वी । से तं संठाणाणुपुव्वी ।
[२०५-४ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[२०५-४ उ.] आयुष्मन् ! एक से लेकर छह तक की एकोत्तर वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से आदि और अन्त रूप दो भंगों को कम करने पर शेष भंग