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________________ पणा . आनुपूर्वीनिरूपण १.२५ आदि करके ऋषभ पद को अंत में उच्चारित किया जाता है। एक से लेकर चौबीस अंकों का परस्पर गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो, उसमें आदि-अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं। ऋषभ आदि के उत्कीर्तन का कारण— इस शास्त्र में आवश्यक का प्रकरण होने पर भी अनानुपूर्वी में सामायिक आदि का उत्कीर्तन न कहकर प्रकरणबाह्य ऋषभ आदि का उत्कीर्तन करने का कारण यह है कि यह शास्त्र सर्वव्यापक है। इसी बात का समर्थन करने के लिए ऋषभ आदि का उत्कीर्तन किया है और उनके नाम का उच्चारण करना इसलिए युक्त है कि वे तीर्थकर्ता हैं। इनके नाम का उच्चारण करने वाला श्रेय को प्राप्त कर लेता है। शेष सूत्रस्थ पदों की व्याख्या सुगम्य है। गणनानुपूर्वी प्ररूपणा २०४. (१) से किं तं गणणाणुपुव्वी ? गणणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३। [२०४-१ प्र.] भगवन् ! गणनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०४-१ उ.] आयुष्मन् ! गणनानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं। वे इस तरह—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी और ३. अनानुपूर्वी। (२) से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी एक्को दस सयं सहस्सं दससहस्साई सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी दस कोडीओ कोडीसयं दसकोडीसयाइं । से तं पुव्वाणुपुव्वी । [२०४-२ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०४-२ उ.] आयुष्मन् ! एक, दस, सौ, सहस्र (हजार), दस सहस्र, शतसहस्र (लाख), दसशतसहस्र, कोटि (करोड़), दस कोटि, कोटिशत (अरब), दस कोटिशत (दस अरब), इस प्रकार से गिनती करना पूर्वानुपूर्वी (३) से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी दसकोडिसयाई जाव एक्को । से तं पच्छाणुपुव्वी । [२०४-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०४-३ उ.] आयुष्मन् ! दस अरब से लेकर व्युत्क्रम से एक पर्यन्त की गिनती करना पश्चानुपूर्वी है। (४) से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए दसकोडिसयगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुव्वी । से तं गणणाणुपुव्वी । [२०४-४ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०४-४ उ.] आयुष्मन् ! इन्हीं को एक से लेकर दस अरब पर्यन्त की एक-एक वृद्धि वाली श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणा करने पर जो भंग हों, उनमें से आदि और अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष रहे
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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