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________________ १२४ अनुयोगद्वारसूत्र [२३०-१ प्र.] भगवन् ! उत्कीर्तनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२३०-१ उ.] आयुष्मन् ! उत्कीर्तनानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं। यथा—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी और ३. अनानुपूर्वी। (२) से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी उसभे १ अजिए २ संभवे ३ अभिणंदणे ४ सुमती ५ पउमप्पभे ६ सुपासे ७ चंदप्पहे ८ सुविही ९ सीतले १० सेजंसे ११ वासुपुजे १२ विमले १३ अणंते १४ धम्मे १५ संती १६ कुंथू १७ अरे १८ मल्ली १९ मुणिसुव्वए २० णमी २१ अरिट्ठणेमी २२ पासे २३ वद्धमाणे २४ । से तं पुव्वाणुपुव्वी । [२३०-१ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२३०-१ उ.] आयुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए—१. ऋषभ, २. अजित, ३. संभव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ९. सुविधि, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शांति, १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. अरिष्टनेमि, २३. पार्श्व, २४. वर्धमान, इस क्रम से नामोच्चारण करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। (३) से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुव्वी वद्धमाणे २४ पासे २३ जाव उसभे १ । से तं पच्छाणुपुव्वी । [२३०-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२३०-३ उ.] आयुष्मन् ! व्युत्क्रम से अर्थात् वर्धमान, पार्श्व से प्रारंभ करके प्रथम ऋषभ पर्यन्त नामोच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है। (४) से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणे । से तं अणाणुपुव्वी । से तं उक्कित्तणाणुपुवी । [२०३-४ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [२०३-४ उ.] आयुष्मन् ! इन्हीं की (ऋषभ से वर्धमान पर्यन्त की) एक से लेकर एक-एक की वृद्धि करके चौवीस संख्या की श्रेणी स्थापित कर परस्पर गुणाकार करने से जो राशि बनती है उसमें से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। विवेचन— सूत्र में उत्कीर्तनापूर्वी की व्याख्या की है। नाम के उच्चारण करने को उत्कीर्तन कहते हैं और इस उत्कीर्तन की परिपाटी उत्कीर्तनानुपूर्वी कहलाती है। ऋषभ, अजित आदि का क्रम से वर्धमान पर्यन्त परिपाटी रूप में नामोच्चारण करना उत्कीर्तनानुपूर्वी का प्रथम भेद पूर्वानुपूर्वी है। इन ऋषभ आदि के नामोच्चारण में ऋषभनाथ सबसे प्रथम उत्पन्न हुए हैं, इसलिए उनका प्रथम नामोच्चारण किया है। तदनन्तर जिस क्रम से अजित आदि हुए उसी क्रम से उनका उच्चारण किया है। पश्चानुपूर्वी में वर्धमान को
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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