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अनुयोगद्वारसूत्र रूप स्थानों को प्राप्त करता है। इस प्रकार आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातभागों से अधिक और शेष दो द्रव्य उसकी अपेक्षा असंख्यातभाग न्यून होते हैं। (ङ८,९) भाव और अल्पबहुत्व द्वार
१९८. भावो वि तहेव । अप्पाबहुं पि तहेव नेयव्वं जाव से तं अणुगमे । से तं णेगमववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी ।
[१९८] भावद्वार और अल्पबहुत्व का भी कथन क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही समझना चाहिए यावत् अनुगम का यह स्वरूप है।
इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन पूर्ण हुआ।
विवेचन— सूत्र में क्षेत्रानुपूर्वी की भाव और अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की तरह कालानुपूर्वी के भी इन दोनों द्वारों का कथन करने का उल्लेख करते हुए अनुगम और नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के वर्णन की समाप्ति की सूचना दी गई है।
भाव और अल्पबहुत्व प्ररूपणा का सारांश इस प्रकार हैआनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक ये तीनों द्रव्य सादि पारिणामिक भाव वाले हैं।
इनका अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना चाहिए समस्त अवक्तव्यद्रव्य स्वभाव से ही कम होने से शेष दो द्रव्यों की अपेक्षा अल्प हैं। अनानुपूर्वीद्रव्य अवक्तव्यकद्रव्यों की अपेक्षा विशेषाधिक तथा आनुपूर्वीद्रव्य इन दोनों द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुण अधिक हैं। यह असंख्यातगुणाधिकता पूर्वोक्त भागद्वार की तरह यहां जानना चाहिए।
___ इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसम्मत कालानुपूर्वी का वर्णन करने के पश्चात् अब संग्रहनयमान्य अनौनिधिकी कालानुपूर्वी का विचार किया जाता है। संग्रहनयमान्य अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी
१९९. से किं तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी ?
संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता । तं जहा—अट्ठपयपरूवणया १ भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोयारे ४ अणुगमे ५ ।
[१९९ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[१९९ उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी पांच प्रकार की है। वे प्रकार हैं- १. अर्थपदप्ररूपणता, २. भंगसमुत्कीर्तनता, ३. भंगोपदर्शनता, ४. समवतार और ५. अनुगम।
विवेचन- अर्थपदप्ररूपणता आदि के लक्षण पूर्व में कहे जा चुके हैं। आगे उनके आशय का निर्देश करते
संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता आदि
२००. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुव्वीए संगहस्स तहा कालाणु- .