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आनुपूर्वीनिरूपण
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से परिणत बना हुआ वह द्रव्य क्षेत्रादि सम्बन्ध के भेद से दो समय से अधिक समय तक भी रहता है तो उस समय भी वह उस स्थिति में भी आनुपूर्वित्व का अनुभवन करता है और तब वह अन्तर ही नहीं होता है।
नाना द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं कहने का कारण यह है कि तीन समय की स्थिति वाले कोई न कोई द्रव्य लोक में सर्वदा रहते हैं।
अनानुपूर्वी द्रव्यों में एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर बताने का कारण यह है कि एक समय की स्थिति वाला एक अनानुपूर्वी द्रव्य जिस समय किसी अन्य रूप में दो समय तक परिणत रहकर बाद में पुनः उसी अपनी स्थिति में आ जाता है तब जघन्य से दो समय का अन्तर माना जाता है. और यदि परिणामान्तर से परिणत हुआ एक समय तक रहता है तो वह अन्तर ही नहीं होता है। क्योंकि उस स्थिति में भी वह एक समय की स्थिति वाला होने से अनानुपूर्वी रूप ही है और यदि दो समय के बाद भी परिणामान्तर से परिणत बना. रहता है तो जघन्यता नहीं है। जब वही द्रव्य असंख्यात काल तक परिणामान्तर से परिणत रहकर पुनः एक समय की स्थिति वाले परिणाम को प्राप्त करता है तब उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है।
नाना द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर न कहने का कारण यह है कि लोक में सर्वदा उनका सद्भाव रहा करता है।
एकवचनान्त अवक्तव्यकद्रव्य के जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर के लिए यह समझना चाहिए कि दो समय की स्थिति वाला कोई अवक्तव्यकद्रव्य परिणामान्तर से परिणत हुआ एक समय तक रहता है और बाद में पुनः वह दो समय की स्थिति को प्राप्त कर लेता है तब विरहकाल जघन्य रूप में एक समय है और जब दो समय की स्थिति वाला कोई अवक्तव्यकद्रव्य असंख्यात काल तक परिणामान्तर से परिणत रहकर पुनः दो समय की अपनी पूर्व स्थिति में आता है तब उसका अन्तर असंख्यात काल का माना जाता है।
नाना अवक्तव्यकद्रव्यों का लोक में सर्वदा सद्भाव पाये जाने से अन्तर नहीं है। (ङ७)भागद्वार
१९७. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं सेसदव्वाणं कइभागे होज्जा ? पुच्छा । जहेव खेत्ताणुपुव्वीए । [१९७ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितने भाग.प्रमाण हैं ?
[१९७ उ.] आयुष्मन् ! यहां कालानुपूर्वी के प्रसंग में तीनों द्रव्यों के लिए क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही कथन समझना चाहिए।
विवेचन— सूत्र में कालानुपूर्वी के भागद्वार का वर्णन करने के लिए क्षेत्रानुपूर्वी के भागद्वार का अतिदेश किया है और क्षेत्रानुपूर्वी के प्रसंग में द्रव्यानुपूर्वी का अतिदेश किया है। आशय यह हुआ कि द्रव्यानुपूर्वी के भागद्वार की तरह इस कालानुपूर्वी के भागद्वार की भी वक्तव्यता जाननी चाहिए। संक्षेप में वह इस प्रकार है
समस्त आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातभागों से अधिक असंख्यातगुणित हैं और शेष द्रव्य अननुपूर्वी एवं अवक्तव्यक द्रव्य इनकी अपेक्षा असंख्यातभाग न्यून हैं, इसका कारण यह है कि अनानुपूर्वी एक समय की स्थिति रूप एक स्थान को और अवक्तव्यकद्रव्य द्विसमय की स्थिति रूप एक स्थान को ही प्राप्त है, किन्तु आनुपूर्वीद्रव्य तीन-चार-पांच आदि समय की स्थिति रूप स्थानों से लेकर असंख्यात समय तक की स्थिति