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अनुयोगद्वारसूत्र
दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्यक है। नाना अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्य सर्वकाल में सम्भव होने से उनकी स्थिति सर्वाद्धा प्रमाण है।
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(ङ६ ) अन्तरप्ररूपणा
१९६. ( १ ) णेगम - ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणमंतरं कालतो केवचिरं होति ? एगदव्वं पडुच्च जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं दो समया, नाणादव्वाइं पडुच्च नत्थि अंतरं । [१९६-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों का कालापेक्षया अन्तर कितने समय का होता है ?
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[१९६-१ उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर दो समय किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है।
(२) गम - ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालतो केवचिरं होति ?
एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं दो समया उक्कोसेणं असंखेजं कालं, णाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं ।
[१९६-२ प्र.] भगवन् ! कालापेक्षया नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वी द्रव्यों का अन्तर कितने समय का होता है ?
[१९६-२ उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है ।
(३) गम - ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाणं पुच्छा ।
एगदव्वं पडुच्च जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, णाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं ।
[१९६-३ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वीद्रव्यों की तरह नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यकद्रव्यों के विषय में भी प्रश्न है।
एक द्रव्य की अपेक्षा अवक्तव्यकद्रव्यों का अन्तर एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल प्रमाण है । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है।
विवेचन — यहां आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का अन्तर - विरहकाल बतलाया है। वे अपने आनुपूर्वी आदि रूपों को छोड़कर अन्य परिमाण से परिणत होकर पुनः उसी रूप में कितने समय बाद परिणत हो जाते हैं ?
एक आनुपूर्वीद्रव्य का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर क्रमशः एक और दो समय बताने का कारण यह है कि यदि तीन समय की स्थिति वाला कोई विवक्षित एक आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वी रूप अपने परिणाम को छोड़कर किसी दूसरे परिणाम से एक समय तक परिणत रहकर पुन: उसी परिणाम से तीन समय की स्थिति वाला बन जाता है तब जघन्य अंतर एक समय का होता है और जिस समय वही द्रव्य दो समय तक परिणामान्तर से परिणत बना रहकर बाद में तीन समय की स्थिति वाला बनता है तो उस दशा में उत्कृष्ट दो समय का अन्तर होता है। यदि परिणामान्तर