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________________ आनुपूर्वीनिरूपण ११५ अपेक्षा से एक ही आनुपूर्वी आदि द्रव्य रूप हैं अर्थात् तीन समय की स्थिति वाले अनन्त द्रव्य एक ही आनुपूर्वी हैं। इसी प्रकार चार समय की स्थिति वाले अनन्त द्रव्य एक आनुपूर्वी हैं यावत् दस समय की स्थिति वाले एक आनुपूर्वी हैं, इत्यादि। अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य असंख्यात कैसे ?– यद्यपि एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों में प्रत्येक द्रव्य अनन्त हैं। लेकिन लोक के असंख्यात प्रदेश हैं, अत: उनके अवगाह भेद असंख्यात हैं । इसलिए एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले जितने भी द्रव्य हैं, उनमें से एकएक द्रव्य में अवगाहना के भेद से भिन्नता है। अतएव इस भिन्नता की विवक्षा की वजह से प्रत्येक द्रव्य असंख्यात हैं। तात्पर्य यह है कि लोक असंख्यातप्रदेशी है, अत: लोक में एक समय की स्थिति वाले और दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों के रहने के स्थान असंख्यात हैं । अतः उन असंख्यात आधार रूप स्थानों में ये द्रव्य रहते हैं । इसलिए एक समय की और दो समय की स्थिति वाले प्रत्येक द्रव्य में असंख्यातता सिद्ध है। (ङ३, ४) क्षेत्र और स्पर्शना प्ररूपणा १९३. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा ?० पुच्छा । एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेजतिभागे वा होजा जाव असंखेजेसु वा भागेसु होजा देसूणे वा लोए होजा, नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा-सव्वलोए होजा । एवं अणाणपुव्विअवत्तव्वयदव्वाणि भाणियव्वाणि जहा णेगम-ववहाराणं खेत्ताणुपुव्वीए । [१९३ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में रहते हैं ? इत्यादि प्रश्न है। [१९३ उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा (समस्त आनुपूर्वीद्रव्य) लोक के संख्यात भाग में रहते हैं यावत् असंख्यात भागों में रहते हैं अथवा देशोन लोक में रहते हैं । किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा नियमतः सर्वलोक में रहते हैं। समस्त आनुपूर्वी द्रव्यों और अवक्तव्य द्रव्यों की वक्तव्यता भी नैगम-व्यवहारनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी के समान १९४. एवं फुसणा कालाणुपुव्वीए वि तहा चेव भाणितव्वा । [१९४] इस कालानुपूर्वी में स्पर्शनाद्वार का कथन तथैव (क्षेत्रानुपूर्वी जैसा ही) जानना चाहिए। विवेचन— इन दो सूत्रों में अनुगम के क्षेत्र और स्पर्शना इन दो द्वारों का निरूपण किया है। क्षेत्रद्वार में आनुपूर्वी-त्रयादि समय की स्थिति वाले द्रव्य का लोक के संख्यात आदि भागों में रहना उन-उन भागों में उनका अवगाह सम्भावित होने की अपेक्षा जानना चाहिए तथा तीन आदि समय की स्थिति वाले सूक्ष्म परिणामयुक्त स्कन्ध के देशोन लोक में अवगाहित होने पर एक आनुपूर्वी द्रव्य देशोन लोकवर्ती होता है। आनुपूर्वी द्रव्य सर्वलोकव्यापी इसलिए नहीं कि सर्वलोकव्यापी तो अचित्त महास्कन्ध ही होता है और वह अचित्त महास्कन्ध एक समय तक ही सर्वलोकव्यापी रहता है। तदनन्तर उसका संकोच-उपसंहार हो जाता है। उसे काल की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आनुपूर्वी द्रव्य कम से कम तीन समय की
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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