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________________ ११४ अनुयोगद्वारसूत्र अणुगमे णवविहे पण्णत्ते । तं जहा संतपयपरूवणया १ जाव अप्पाबहुं चेव ९ ॥ १५॥ [१९० प्र.] भगवन् ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? [१९० उ.] आयुष्मन् ! अनुगम नौ प्रकार का कहा है। वे प्रकार हैं—१. सत्पदप्ररूपणा यावत् ९. अल्पबहुत्व। विवेचन- सूत्र में अनुगम के नौ प्रकारों में से पहले सत्पदप्ररूपणता और अंतिम अल्पबहुत्व का नामोल्लेख द्वारा और शेष का ग्रहण जाव—यावत् पद द्वारा किया है। उन सभी नौ प्रकारों के नाम अनुक्रम से इस प्रकार हैं १. सत्पदप्ररूपणता, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अंतर, ७. भाग, ८. भाव, ९. अल्पबहुत्व। इन नौ प्रकारों के लक्षण पूर्व कथनानुसार यहां भी समझ लेना चाहिए। इनकी वक्तव्यता इस प्रकार है(ङ१) सत्पदप्ररूपणता १९१. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं किं अस्थि णत्थि ? नियमा तिण्णि वि अस्थि । [१९१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं या नहीं हैं ? [१९१ उ.] आयुष्मन् ! नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। विवेचन— सूत्र में अनुगम के प्रथम भेद सत्पदप्ररूपणता का आशय स्पष्ट किया है। विद्यमान पदार्थविषयक पद की प्ररूपणा को सत्पदप्ररूपणता कहते हैं। अतएव जब ऐसा प्रश्न किया जाता है कि नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्य द्रव्य हैं या नहीं ? तब इसका उत्तर दिया जाता है—नियमा तिण्णि वि अत्थि—से तीनों द्रव्य सदैव अस्ति रूप हैं—नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। यही सत्पदप्ररूपणता की वक्तव्यता का आशय है। (ङ२) द्रव्यप्रमाण १९२. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं असंखेजाइं अणंताई ? तिण्णि वि नो संखेज्जाइं, असंखेजाइं, नो अणंताई । [१९२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त [१९२ उ.] आयुष्मन् ! तीनों द्रव्यसंख्यात और अनन्त नहीं हैं, परन्तु असंख्यात हैं। विवेचन— सूत्र में आनुपूर्वी आदि द्रव्यों को असंख्यात बताया है। इसका कारण यह है कि लोक में द्रव्य तो अनन्त हैं, किन्तु तीन समय आदि की स्थिति वाले प्रत्येक परमाणु आदि की समयत्रयादि रूप स्थिति एक ही है। क्योंकि यहां काल की प्रधानता है और द्रव्यबहुत्व की गौणता। इसलिए तीन समय, चार समय आदि की, एक समय की और दो समय की स्थिति वाले जितने भी परमाणु आदि अनन्त द्रव्य हैं वे सब अपनी-अपनी स्थिति की
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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