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आनुपूर्वीनिरूपण
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समय की स्थिति वाला, एक समय की स्थिति वाला और दो समय की स्थिति वाला एक-एक व्यक्ति रूप परमाणु आदि अनन्ताणुक पर्यन्त द्रव्य क्रमशः आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक है। यह तो हुआ एकवचनापेक्षा आनुपूर्वी आदि पद का वाच्यार्थ, लेकिन जब यही तीन समय आदि की स्थिति वाले पूर्वोक्त द्रव्यव्यक्ति अनेक रूप में विवक्षित होते हैं तब वे 'आनुपूर्वियां' आदि बहुवचनान्त पद के वाच्य हो जाते हैं । यह असंयोग पक्ष में एकवचन के तीन और बहुवचन के तीन, कुल छह भंगों का कथन है।
लेकिन प्रस्तुत सूत्र में संयोगज भंगों की वाच्यार्थरूपता का उल्लेख नहीं किया है। उन भंगों को द्रव्यानुपूर्वी के समान समझ लेना चाहिए।
यह भंगोपदर्शनता की वक्तव्यता है । अब समवतार का कथन करते हैं ।
(घ) समवतार
१८९. से किं तं समोयारे ? समोयारे णेगम - ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कहिं समोयरंति ? जाव तिणि वि सट्टाणे सट्टाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं । से तं समोयारे ।
[१८९ प्र.] भगवन् ! समवतार का क्या स्वरूप है ? नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्यों का कहां समवतार (अन्तर्भाव) होता है ? यावत् —
[१८९ उ.] तीनों ही स्व-स्व स्थान में समवतरित होते हैं। इस प्रकार समवतार का स्वरूप जानना चाहिए । विवेचन—– सूत्र में समवतार सम्बन्धी आशय का संकेत मात्र किया है। स्पष्टीकरण इस प्रकार है— समवतार अर्थात् उन-उन द्रव्यों का स्व-स्व जातीय द्रव्यों में अन्तर्भूत होना । इस अपेक्षा पूर्वपक्ष के रूप में निम्नलिखित प्रश्न है
क्या नैगम-व्यवहारनयसम्मत समस्त आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में या अनानुपूर्वीद्रव्यों में या अवक्तव्यकद्रव्यों में अन्तर्भूत होते हैं ?
इसी प्रकार के तीन-तीन अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्य-विषयक भी जानना चाहिए। इस तरह कुल नौ प्रश्न हैं। जिनका उत्तर इस प्रकार है
१. नैगम-व्यवहारनयसम्मत सभी प्रश्न आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में ही समाविष्ट होते हैं । किन्तु अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट नहीं होते हैं।
२. नैगम-व्यवहारनयसम्मत समस्त अनानुपूर्वीद्रव्य अपनी जाति (अनानुपूर्वीद्रव्य) में अन्तर्भूत होते हैं । उनका विजातीय आनुपूर्वी या अवक्तव्य द्रव्यों में अन्तर्भाव नहीं होता है ।
३. , नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य अवक्तव्यकद्रव्यों में ही अन्तर्भूत होते हैं, अन्य आनुपूर्वी आदि द्रव्यों में नहीं ।
सारांश यह कि आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक ये तीनों ही प्रकार के द्रव्य अपने-अपने स्थान (जाति) में ही अन्तर्भूत होते हैं ।
(ङ) अनुगम
१९०. से किं तं अणुगमे ?