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________________ ११२ अनुयोगद्वारसूत्र [१८६] आयुष्मन् ! आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है, इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी २६ भंग जानना चाहिए यावत् यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है। १८७. एयाए णं णेगम-ववहाराणं जाव किं पओयणं ? एयाए णं णेगम-ववहाराणं जाव भंगोवदंसणया कजति । [१८७ प्र.] भगवन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत यावत् (भंगसमुत्कीर्तनता का) क्या प्रयोजन है ? [१८७ उ.] आयुष्मन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत यावत् (भंगसमुत्कीर्तनता) से भंगोपदर्शनता की जाती है। विवेचन— इस सूत्रपाठ की व्याख्या स्पष्ट है । द्रव्यानुपूर्वी की तरह कालानुपूर्वी के प्रसंग में भी छब्बीस भंग जानना चाहिए। वे छब्बीस भंग इस प्रकार हैं___आनुपूर्वी आदि एकवचनान्त तीन पद के असंयोगी तीन भंग हैं और इसी प्रकार बहुवचनान्त पद के तीन भंग बनते हैं । इस प्रकार पृथक्-पृथक् छह भंग हो जाते हैं और संयोगपक्ष में इन तीनों पदों के द्विसंयोगी भंग तीन होते हैं। इनमें एक-एक भंग में दो-दो का संयोग होने पर एकवचन और बहुवचन को लेकर चार-चार भंग हो जाते हैं। इस प्रकार तीनों भंगों के द्विकसंयोगी कुल भंग बारह बनते हैं तथा त्रिकसंयोग में एकवचन और बहुवचन को लेकर आठ भंग बनते हैं । इस प्रकार सब भंग मिलाकर (६+१२+८ = २६) छब्बीस होते हैं । द्रव्यानुपूर्वी के प्रसंग में इनके नाम बताये जा चुके हैं । तदनुसार यहां भी वही नाम समझ लेना चाहिए। - अब प्रयोजनरूप में संकेतित भंगोपदर्शनता का निरूपण करते हैं। (ग) भंगोपदर्शनता १८८. से किं तं णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया तिसमयद्वितीए आणुपुव्वी एगसमयद्वितीए अणाणुपुव्वी दुसमयट्टितीए अत्तव्वए, तिसमयद्वितीयाओ आणुपुव्वीओ एगसमयद्वितीयाओ अणाणुपुल्वीओ दुसमयद्वितीयाई अवत्तव्वयाई । एवं दव्वाणुगमेणं ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा, जाव से तं णेगमववहाराणं भंगोवदंसणया । __ [१८८ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है ? [१८८ उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप इस प्रकार है—त्रिसमयस्थितिक एक-एक परमाणु आदि द्रव्य आनुपूर्वी है, एक समय की स्थिति वाला एक-एक परमाणु आदि द्रव्य अनानुपूर्वी है और दो समय की स्थिति वाला परमाणु आदि द्रव्य अवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य 'आनुपूर्वियां' इस पद के वाच्य हैं। एक समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य 'अनानुपूर्वियां' तथा दो समय की स्थिति वाले द्रव्य 'अवक्तव्य' पद के वाच्य हैं । इस प्रकार यहां भी द्रव्यानुपूर्वी के पाठानुरूप छब्बीस भंगों के नाम जानने चाहिए, यावत् यह भंगोपदर्शनता का आशय है। विवेचन— सूत्रार्थ का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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