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________________ ११० (क) अर्थपदप्ररूपणता अनुयोगद्वारसूत्र १८४. से किं तं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया तिसमयईिए आणुपुव्वी जाव दससमयईिए अणुवी संखेज्जसमयट्ठिईए आणुपुव्वी असंखेज्जसमयद्वितीए आणुपुव्वी । एगसमयद्वितीए अणाणुपुवी । दुसमयईए अवत्तव्वए । तिसमयद्वितीयाओ आणुपुव्वीओ जाव संखेज्जसमयद्वितीयाओ आणुपुव्वीओ असंखेज्जसमयद्वितीयाओ आणुपुव्वीओ । समयद्वितीयाओ अणाणुपुव्वीओ । दुसमयट्ठिईयाइं अवत्तव्वयाइं । से तं गम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया । [१८४ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? [१८४ उ.] आयुष्मन् ! (नैगम-व्यवहारनयसम्मत) अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार है— तीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है यावत् दस समय, संख्यात समय, असंख्यात समय की स्थितिवाला द्रव्य आनुपूर्वी है। एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है। दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्यक है । तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य आनुपूर्वियां हैं यावत् संख्यातसमयस्थितिक, असंख्यातसमयस्थितिक द्रव्य आनुपूर्वियां हैं। एक समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य अनेक अनानुपूर्वियां हैं। दो समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य अनेक अवक्तव्यक रूप हैं। इस प्रकार से नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप जानना चाहिए। १८५. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए जाव भंगसमुक्कित्तणया कज्जति । [१८५] इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता के द्वारा यावत् भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। विवेचन—- इन दो सूत्रों में नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के पहले भेद अर्थपदप्ररूपणता का आशय और प्रयोजन बताया है । अर्थपदप्ररूपणता के प्रसंग में प्रयुक्त आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी एवं अवक्तव्यक शब्द के अर्थ पूर्व में स्पष्ट किये जा चुके हैं। अतएव काल के वर्णन के प्रसंग में जिस द्रव्य की स्थिति कम से कम तीन समय की है, वह त्रिसमयस्थितिक द्रव्य आनुपूर्वी है। ऐसा द्रव्य परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी हो सकता है । परन्तु उसकी स्थिति कम से कम तीन समय की होनी चाहिए। अधिकसे-अधिक असंख्यात समय की स्थिति वाला द्रव्य भी आनुपूर्वी रूप कहा जाएगा ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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