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आनुपूर्वीनिरूपण
इस प्रकार से औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी की एवं साथ ही क्षेत्रानुपूर्वी की वक्तव्यता समाप्त हुई जानना चाहिए।
विवेचन— इन चार सूत्रों में सामान्य से औपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का विवेचन करके क्षेत्रानुपूर्वी की वक्तव्यता का उपसंहार किया है।
लोकाकाश असंख्यात प्रदेशप्रमाण है। अतः एकप्रदेश रूप क्षेत्र से प्रारंभ करके क्रमशः असंख्यात प्रदेश पर्यन्त के क्षेत्र का पूर्वानुपूर्वी आदि के रूप में उल्लेख किया है।
अब क्षेत्रानुपूर्वी के अनन्तर क्रमप्राप्त कालानुपूर्वी का वर्णन प्रारंभ करते हैं। कालानुपूर्वी प्ररूपणा
१८०. से किं तं कालाणुपुव्वी ? कालाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता । तं जहा—ओवणिहिया य १ अणोवणिहिया य २ । [१८० प्र.] भगवन् ! कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [१८० उ.] आयुष्मन् ! कालानुपूर्वी के दो प्रकार हैं, यथा—१. औपनिधिकी और २. अनौपनिधिकी.। १८१. तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा ।
[१८१] इनमें से (अल्प विषय वाली होने से अभी विवेचन न करने के कारण) औपनिधिकी कालानुपूर्वी स्थाप्य है । तथा
१८२. तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा—णेगम-ववहाराणं १ संगहस्स य २ ।
[१८२] अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है—१. नैगम-व्यवहारनयसम्मत और २. संग्रहनयसम्मत।
विवेचन— यह सूत्रत्रय कालानुपूर्वी के वर्णन करने की भूमिका रूप हैं। अब सूत्रागत संकेतानुसार प्रथम नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का विवेचन प्रारंभ करते हैं। नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी
१८३. से किं तं णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी ?
णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुव्वी पंचविहा पण्णत्ता । तं जहा—अट्ठपयपरूवणया १ भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोयारे ४ अणुगमे ५ ।
[१८३ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[१८३ उ.] आयुष्मन् ! (नैगम-व्यवहारनयसम्मत) अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के पांच प्रकार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं—१. अर्थपदप्ररूपणता, २. भंगसमुत्कीर्तनता, ३. भंगोपदर्शनता, ४. समवतार, ५. अनुगम।
विवेचन— सूत्रोक्त अर्थपदप्ररूपणता आदि के लक्षण पूर्व में बतलाये जा चुके हैं। अतएव प्रसंगानुरूप अब उनका मंतव्य स्पष्ट करते हैं।