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________________ ९२ अनुयोगद्वारसूत्र अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति । [१४८-१ प्र.] भगवन् ! समवतार का क्या स्वरूप है ? नैगम-व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्यों का समावेश कहां होता है ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में, अनानुपूर्वी द्रव्यों में अथवा अवक्तव्यक द्रव्यों में समावेश होता है ? [१४८-१ उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वी द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं, किन्तु अनानुपूर्वी द्रव्यों और अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट नहीं होते हैं। (२) एवं तिण्णि वि सट्ठाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं । से तं समोयारे । [१४८-२] इस प्रकार तीनों स्व-स्व स्थान में ही समाविष्ट होते हैं । यह समवतार का स्वरूप है। विवेचन— सूत्र में समवतार का स्वरूप बताया है। समवतार का अर्थ है समाविष्ट होना, एक का दूसरे में मिल जाना। यह समवतार स्वजाति रूप द्रव्यों में होता है, परजाति रूप में नहीं। यही समवतार का स्वरूप है। नैगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वी-अनुगमप्ररूपणा १४९. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे णवविहे पण्णत्ते । तं जहा— संतपयपरूवणया १ दव्वपमाणं २ च खेत्त ३ फुसणा ४ य । कालो ५ य अंतरं ६ भाग ७ भाव ८ अप्पाबहुं ९ चेव ॥१०॥ [१४९ प्र.] भगवन् ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? [१४९ उ.] आयुष्मन् ! अनुगम नौ प्रकार का कहा है। यथा—(गाथार्थ) १. सत्पदप्ररूपणा, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अंतर, ७. भाग, ८. भाव और ९. अल्पबहुत्व । विवेचन– सूत्र में अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी सम्बन्धी अनुगम के भेदों के नाम गिनाये हैं। इन नौ भेदों के लक्षण पूर्वोक्त अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी-अनुगम के अनुरूप समझ लेना चाहिए। अब यथाक्रम इन नौ भेदों की वक्तव्यता का आशय स्पष्ट करते हैं। अनुगमसम्बन्धी सत्पदप्ररूपणा १५०. से किं तं संतपयपरूवणया ? णेगम-ववहाराणं खेत्ताणुपुव्वीदव्वाइं किं अत्थि णत्थि ? णियमा अस्थि । एवं दोण्णि वि । [१५० प्र.] भगवन् ! सत्पदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? नैगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य (सत्अस्तित्व-रूप) हैं या नहीं? [१५० उ.] आयुष्मन् ! नियमतः हैं। इसी प्रकार दोनों—अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए कि वे नियमतः निश्चित रूप से हैं। अनुगमसम्बन्धी द्रव्यप्रमाण १५१. णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं किं संखेजाइं असंखेजाइं अणंताई ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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