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आनुपूर्वीनिरूपण
[१४७ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है ? ___ [१४७ उ.] आयुष्मन् ! तीन आकाशप्रदेशावगाढ त्र्यणुकादि स्कन्ध आनुपूर्वी पद का वाच्य हैं—आनुपूर्वी हैं। एक आकाशप्रदेशावगाही परमाणुसंघात अनानुपूर्वी तथा दो आकाशप्रदेशावगाही व्यणुकादि स्कन्ध क्षेत्रापेक्षा अवक्तव्यक कहलाता है।
तीन आकाशप्रदेशावगाही अनेक स्कन्ध 'आनुपूर्वियां' इस बहुवचनान्त पद के वाच्य हैं, एक-एक आकाशप्रदेशावगाही अनेक परमाणुसंघात 'अनानुपूर्वियां' पद के तथा द्वि आकाशप्रदेशावगाही व्यणुक आदि अनेक द्रव्यस्कन्ध 'अवक्तव्यक' पद के वाच्य हैं।
अथवा त्रिप्रदेशावगाढस्कन्ध और एक प्रदेशावगाढस्कन्ध एक आनुपूर्वी और एक अनानुपूर्वी हैं। इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह छब्बीस भंग यहां भी जानने चाहिए यावत् यह नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप है।
विवेचन— सूत्र में भंगोपदर्शनता का स्वरूप स्पष्ट किया है। यहां बताये गये छब्बीस भंगों का वर्णन द्रव्यानुपूर्वी के अनुरूप है। लेकिन दोनों के वर्णन में यह भिन्नता है कि द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरणगत आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक पदों के वाच्यार्थ त्रिप्रदेशिक आदि स्कन्ध, एकप्रदेशी पुद्गलपरमाणु और द्विप्रदेशीस्कन्ध हैं जबकि इस क्षेत्रानुपूर्वी के प्रकरणगत भंगोपदर्शनता में आकाश के तीन प्रदेशों में स्थित त्रिप्रदेशिक आदि स्कन्ध की आनुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ माने हैं किन्तु एक या दो आकाशप्रदेशों में स्थित त्रिप्रदेशिक आदि स्कन्ध आनुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ नहीं हैं। क्योंकि यह पूर्व में कहा जा चुका है कि त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आकाश के एक प्रदेश में भी, दो प्रदेशों में भी और तीन प्रदेशों में भी अवगाढ हो सकता है। इसलिए क्षेत्रानुपूर्वी में यदि त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ है तो वह क्षेत्र की अपेक्षा अनानुपूर्वी और यदि दो प्रदेशों में अवगाढ है तो अवक्तव्यक शब्द का वाच्य होगा।
इसी तरह असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आकाश के एक, दो, तीन आदि प्रदेशों में और असंख्यात प्रदेशों में भी ठहर सकता है। अतः क्षेत्र की अपेक्षा यह असंख्यातणुक स्कन्ध भी एक प्रदेश में स्थित होने पर.अनानुपूर्वी माना जाएगा और दो प्रदेशों में अवगाढ होने पर अवक्तव्यक तथा तीन से लेकर असंख्यात प्रदेशों तक में स्थित होने पर आनुपूर्वी माना जाएगा।
इस दृष्टि को ध्यान में रखकर क्षेत्र की अपेक्षा आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक इन एकवचनान्त एवं बहुवचनान्त पदों के असंयोग और संयोग से बनने वाले छब्बीस भंगों का वाच्यार्थ भंगोपदर्शनता में समझ लेना चाहिए। नैगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वी की समवतारप्ररूपणा
१४८. (१) से किं तं समोयारे ? समोयारे णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कहिं समोयरंति ? किं आणुपुव्वीदव्वेहि समोयरंति ? अणाणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदव्वेहिं समोयरंति ?
आणुपुव्वीदव्वाइं आणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति, नो अणाणुपुव्वीदव्वेहिं समोयरंति नो