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________________ ८६ अनुयोगद्वारसूत्र अद्धासमय से प्रारंभ करके क्रमानुसार उल्लेख किए जाने पर पश्चानुपूर्वी कहलाती है। किन्तु अनानुपूर्वी में विवक्षित पदों के उक्त दोनों क्रमों की अपेक्षा करके संभावित भंगों से इन पदों की विरचना की जाती है। उसमें सबसे पहले एक का अंक रखकर एक-एक की उत्तरोत्तर वृद्धि छह संख्या तक होती है, जैसे १-२-३-४-५-६। फिर इनमें परस्पर गुणा करने पर बनने वाली अन्योन्याभ्यस्त राशि (१४२४३४४४५४६ = ७२०) में आदि एवं अंत्य भंगों को कम करने से अनानुपूर्वी बनती है, क्योंकि आद्य भंग पूर्वानुपूर्वी का और अंतिम भंग पश्चानुपूर्वी का है। औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का दूसरा प्रकार १३५. अहवा ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३ । [१३५] अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की कही है। यथा—१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी और ३. अनानुपूर्वी। विवेचन— पूर्व सूत्र में सामान्य से धर्मास्तिकाय आदि षड्द्रव्यों की पूर्वानुपूर्वी आदि का कथन किया है। अब उसी को पुद्गलास्तिकाय पर घटित करने के लिए पुनः औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के तीन भेदों का यहां उल्लेख किया है। पूर्वानुपूर्वी आदि तीनों के लक्षण सामान्यतया पूर्ववत् हैं। लेकिन पुद्गलास्तिकाय की अपेक्षा क्रम से पुनः उनका निरूपण करते हैंपूर्वानुपूर्वी १३६. से किं तं पुव्वाणुपुव्वी ? पुव्वाणुपुव्वी परमाणुपोग्गले दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए जाव संखिजपएसिए असंखिज्जपएसिए अणंतपएसिए । से तं पुव्वाणुपुव्वी । [१३६ प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? । [१३६ उ.] आयुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है—परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन रूप क्रमात्मक आनुपूर्वी को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। पश्चानुपूर्वी १३७. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? - पच्छाणुपुव्वी अणंतपएसिए असंखिजपएसिए संखिजपएसिए जाव दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले । से तं पच्छाणुपुव्वी । [१३७ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का स्वरूप क्या है ? [१३७ उ.] आयुष्मन् ! पश्चानुपूर्वी का स्वरूप यह है—अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक यावत् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल । इस प्रकार
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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