SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनुपूर्वीनिरूपण ८३ भागों या असंख्यात भागों प्रमाण नहीं हैं, किन्तु नियमत: तीसरे भाग प्रमाण होते हैं। इसी प्रकार दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के विषय में भी समझना चाहिए। विवेचन- सूत्र में भागप्ररूपणा का प्ररूपण किया। आशय यह है कि संग्रहनयसम्मत समस्त आनुपूर्वी आदि द्रव्यों में से आनुपूर्वीद्रव्य नियम से शेष द्रव्यों के विभाग प्रमाण हैं। क्योंकि अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों को मिलाकर जो राशि उत्पन्न होती है, उस राशि के तीन भाग करने पर जो तृतीय भाग आये तत्प्रमाण आनुपूर्वीद्रव्य हैं। क्योंकि यह तीन राशियों में से एक राशि है। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए जानना कि वे भी तीसरे-तीसरे भाग प्रमाण हैं। . संग्रहनयसम्मत भावप्ररूपणा १३०. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं कयरम्मि भावे होजा ? नियमा सादिपारिणामिए भावे होजा । एवं दोण्णि वि । अप्पाबहुं नत्थि । से तं अणुगमे। से तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणपव्वी । से तं अणोवणिहिया दव्वाणपव्वी । [१३० प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में होते हैं ? [१३० उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सादि-पारिणामिक भाव में होते हैं। यही कथन शेष दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए। राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है। यह अनुगम का वर्णन है। इस प्रकार से संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का कथन पूर्ण हुआ और साथ ही अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई। विवेचन— सूत्रार्थ स्पष्ट है। सम्बन्धित विशेष वक्तव्य इस प्रकार है आनुपूर्वी आदि राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है। क्योंकि संग्रहनय की दृष्टि से आनुपूर्वी आदि द्रव्यों में अनेकत्व नहीं है, सभी एक-एक द्रव्य हैं । जब अनेकत्व नहीं, सभी एक-एक हैं तो उनमें अल्पबहुत्व कैसे संभव होगा? ___अल्पबहुत्व नहीं होने पर भी संग्रहनयसम्मत अनुगम के प्रकरण में जो 'संगहस्स आणुपुव्वी दव्वाइं किं संखिज्जाइं.......' आदि बहुवचनान्त पदों का प्रयोग किया गया है उसका कारण यह है कि संग्रहनय की अपेक्षा तो ये द्रव्य एक-एक हैं, परन्तु व्यवहारनय से बहुत भी हैं। ___इस प्रकार से अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी का निरूपण समाप्त हुआ। अब पूर्व में जिस औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी को स्थाप्य मानकर वर्णन नहीं किया था, उसका कथन आगे किया जाता है। औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वीनिरूपण १३१. से किं तं ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी ? - ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३ य ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy