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________________ ८२ अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन- आनुपूर्वी आदि द्रव्यों की स्पर्शना का कारण पूर्वोक्त क्षेत्रप्ररूपणा के समान समझ लेना चाहिए। ये आनुपूर्वी आदि द्रव्य आनुपूर्वित्व आदि रूप सामान्य के सर्वव्यापी होने से सर्वलोकव्यापी हैं, उनकी सत्ता सर्वलोक में है। अतएव ये सभी नियमतः सर्वलोक का स्पर्श करते हैं। संग्रहनयसम्मत काल और अंतर की प्ररूपणा १२७. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं कालओ केवचिरं होंति ? सव्वद्धा । एवं दोण्णि वि । [१२७ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य काल की अपेक्षा कितने काल तक (आनुपूर्वी रूप में) रहते हैं ? [१२७ उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वी रूप में सर्वकाल रहते हैं। इसी प्रकार का कथन शेष दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए। १२८. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाणं कालतो केवचिरं अंतरं होंति ? नत्थि अंतरं । एवं दोण्णि वि । [१२८ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्यों का कालापेक्षया कितना अंतर-विरहकाल होता है ? [१२८ उ.] आयुष्मन् ! कालापेक्षया आनुपूर्वीद्रव्यों में अंतर नहीं होता है। इसी प्रकार शेष दोनों द्रव्यों के लिए समझना चाहिए। विवेचन— इन दोनों सूत्रों में संग्रहनयमान्य समस्त आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का काल की अपेक्षा अवस्थान और अंतर का निरूपण किया है। जिसका आशय यह है___आनुपूर्वित्व, अनानुपूर्वित्व और अवक्तव्यकत्व सामान्य का विच्छेद नहीं होने से इनका अवस्थान सर्वाद्धासार्वकालिक है और इसीलिए काल की अपेक्षा इनका विरहकाल भी नहीं है। इन दोनों बातों का निरूपण करने के लिए पद दिये हैं—'सव्वद्धा' और 'नत्थि अंतरं ।' सारांश यह कि आनुपूर्वित्व आदि का कालत्रय में सत्त्व रहने के कारण विच्छेद न होने से उनका अवस्थान सार्वकालिक है और इसीलिए उनमें कालिक अंतर-विरहकाल भी संभव नहीं है। संग्रहनयसम्मत भागप्ररूपणा १२९. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं सेसदव्वाणं कतिभागे होजा ? किं संखेजतिभागे होज्जा ? असंखेजतिभागे होजा ? संखेजेसु भागेसु होजा ? असंखेजेसु भागेसु होज्जा ? नो संखेजतिभागे होजा नो असंखेजतिभागे होजा णो संखेजेसु भागेसु होज्जा णो असंखेजेसु भागेसु होज्जा, नियमा तिभागे होज्जा । एवं दोण्णि वि । [१२९ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग प्रमाण होते हैं ? क्या संख्यात भाग प्रमाण होते हैं या असंख्यात भाग प्रमाण होते हैं ? संख्यात भागों प्रमाण अथवा असंख्यात भागों प्रमाण होने हैं? [१२९ उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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