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आनुपूर्वीनिरूपण
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संभव नहीं हैं। किन्तु एक-एक राशि ही हैं। इसी बात का संकेत करने के लिए सूत्र में पद दिया है— नियमा एगो रासी । जिसका अर्थ यह है कि जैसे विशिष्ट एक परिणाम से परिणत एक स्कन्ध में तदारंभक परमाणुओं की बहुलता होने पर भी एकता की ही मुख्य रूप से विवक्षा होती है। उसी प्रकार आनुपूवीद्रव्य अनेक होने पर भी उनमें आनुपूर्वत्व सामान्य एक होने से उन्हें संग्रहनय एक मानता है ।
संग्रहनयसम्मत क्षेत्रप्ररूपणा
१२५. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स कतिभागे होज्जा ? किं संखेज्जतिभागे होज्जा ? असंखेज्जतिभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होजा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ?
नो संखेज्जतिभागे होज्जा नो असंखेज्जतिभागे होज्जा नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सव्वलोए होज्जा ? एवं दोणि वि ।
[१२५ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? क्या संख्यात भाग में हैं ? असंख्यात भाग में हैं ? संख्यात भागों में हैं ? असंख्यात भागों में हैं ? अथवा सर्वलोक में हैं ?
[१२५ उ.] आयुष्मन् ! समस्त आनुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात भागों या असंख्यात भागों में नहीं हैं किन्तु नियमतः सर्वलोक में हैं ।
इसी प्रकार का कथन दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए । अर्थात् ये दोनों भी समस्त लोक में हैं ?
विवेचन— संग्रहनय की अपेक्षा आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का क्षेत्र सर्वलोक बताया है। उसका कारण यह है कि आनुपूर्वित्व आदि रूप सामान्य एक है और वह सर्वलोकव्यापी है । इसीलिए आनुपूर्वी आदि द्रव्यों की सत्ता सर्वलोक में है ।
संग्रहनयसम्मत स्पर्शनाप्ररूपणा
१२६. संगहस्स आणुपुव्वीदव्वाइं लोगस्स किं संखेज्जतिभागं फुसंति ? असंखेज्जतिभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सव्वलोगं फुसंति ?
नो संखेज्जतिभागं फुसंति नो असंखेज्जतिभागं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नियमा सव्वलोगं फुसंति । एवं दोन्निव ।
[१२६ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग का, असंख्यात भाग का, संख्यात भागों या असंख्यात भागों या सर्वलोक का स्पर्श करते हैं ?
[१२६ उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यात भाग का स्पर्श नहीं करते हैं, असंख्यात भाग का स्पर्श नहीं करते हैं, संख्यात भागों और असंख्यात भागों का भी स्पर्श नहीं करते हैं, किन्तु नियम से सर्वलोक का स्पर्श करते हैं।
इसी प्रकार का कथन अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक रूप दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिए।