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________________ ७८ अनुयोगद्वारसूत्र [११७ उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता द्वारा संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता (भंगों का निर्देश) की जाती है। विवेचन- इस सूत्र द्वारा संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का प्रयोजन स्पष्ट किया है कि इससे भंगसमुत्कीर्तनता रूप प्रयोजन सिद्ध होता है। इस भंगसमुत्कीर्तनता की व्याख्या निम्न प्रकार हैसंग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता एवं प्रयोजन ११८. से किं तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया ? - संगहस्स-भंगसमुक्कित्तणया अत्थि आणुपुव्वी १ अस्थि अणाणुपुव्वी २ अस्थि अवत्तव्वए ३ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य ४ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ५ अहवा अत्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ६ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ७ । एवं एए सत्त भंगा । से तं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया । [११८ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या स्वरूप है ? [११८ उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप इस प्रकार है १. आनुपूर्वी है, २. अनानुपूर्वी है, ३. अवक्तव्यक है । अथवा–४. आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, ५. आनुपूर्वी और अवक्तव्यक है, ६. अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक है। अथवा—७. आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी-अवक्तव्यक है। इस प्रकार ये सात भंग होते हैं। यह प्ररूपणा संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है। ११९. एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं ? । एयाए णं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए संगहस्स भंगोवदंसणया कजति । [११९ प्र.] भगवन् ! इस संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है ? [११९ उ.] आयुष्मन् ! इस संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता के द्वारा भंगोपदर्शन किया जाता है। विवेचन- इन दो सूत्रों में भंगसमुत्कीर्तनता का आशय और प्रयोजन स्पष्ट किया है। भंगसमुत्कीर्तनता में मूल तीन पद हैं—आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य। इनके वाच्यार्थ पूर्व में स्पष्ट किये जा चुके हैं। इन तीनों पदों के पृथक्-पृथक् स्वतन्त्र तीन भंग, दो-दो पदों के संयोग से तीन भंग और तीनों पदों के संयोग से एक भंग बनता है। इस प्रकार तीनों पदों के स्वतन्त्र और संयोगज कुल सात भंग होते हैं। ___ इन भंगों के कथन द्वारा भंगोपदर्शनता रूप प्रयोजन सिद्ध होता है, अतएव अब भंगोपदर्शनता को स्पष्ट करते हैं। संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता १२०. से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया ? भंगोवदंसणया तिपएसिया आणुपुव्वी १ परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वी २ दुपएसिया अवत्तव्वए ३ अहवा तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य ४ अहवा तिपएसिया य दुपएसिया य आणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ५ अहवा परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अणाणुपुव्वी
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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