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________________ ७७ आनुपूर्वीनिरूपण संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता एवं प्रयोजन ११६. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया तिपएसिया आणुपुव्वी चउप्पएसिया आणुपुव्वी जाव दसपएसिया आणुपुव्वी संखिज्जपएसिया आणुपुव्वी असंखिजपएसिया आणुपुव्वी अणंतपदेसिया आणुपुल्वी, परमाणुपोग्गला अणाणुपुल्वी, दुपदेसिया अवत्तव्वए । से तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया । [११६ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? [११६ उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार है—त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, चतुःप्रदेशी स्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दसप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है। परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी हैं और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक है। संगहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का यह स्वरूप है। विवेचन– संग्रहनय की दृष्टि से यह अर्थपदप्ररूपणता है। इसमें और पूर्व की नैगम-व्यवहारनयसम्मत . अर्थपदप्ररूपणता में यह अन्तर है कि नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एक आनुपूर्वीद्रव्य है और अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अनेक आनुपूर्वीद्रव्य हैं । इस प्रकार एकत्व और अनेकत्व दोनों का निर्देश किया है। यह कथन अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त जानना चाहिए। किन्तु संग्रहनय सामान्यवादी है और उसके अविशुद्ध एवं विशुद्ध यह दो प्रकार हैं । अतएव सामान्यवादी होने से अविशुद्ध संग्रहनय के मतानुसार समस्त त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एक ही आनुपूर्वी है, क्योंकि सभी त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यदि वे अपने त्रिप्रदेशित्व रूप सामान्य से भिन्न हैं तो द्विप्रदेशिक आदि स्कन्ध की तरह वे त्रिप्रदेशिक स्कन्ध नहीं कहला सकते हैं और यदि त्रिप्रदेशिकत्व रूप सामान्य से वे अभिन्न हैं तो वे सभी त्रिप्रदेशी स्कन्ध एक रूप ही हैं। इसी कारण सभी त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एक ही आनुपूर्वी है, अनेक आनुपूर्वीद्रव्य नहीं हैं। ___ इसी प्रकार चतुःप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्ताणुक स्कन्ध तक सब स्वतन्त्र, स्वतन्त्र भिन्न-भिन्न चतुष्प्रदेशी आदि आनुपूर्वी हैं। उक्त दृष्टि अविशुद्ध संग्रहनय की है। परन्तु विशुद्ध संग्रहनय के मतानुसार त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त के स्कन्धों की जितनी भी आनुपूर्वियां हैं, वे सब आनुपूर्वित्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण एक ही आनुपूर्वी रूप हैं। ___ इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक के लिए समझना चाहिए कि अनानुपूर्वित्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण समस्त परमाणुपुद्गल रूप अनानुपूर्वियां एक ही अनानुपूर्वी हैं। अवक्तव्यकत्व रूप सामान्य से अभिन्न होने के कारण समस्त द्विप्रदेशिक स्कन्ध भी एक अवक्तव्यक रूप हैं। ११७. एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं ? एयाए णं संगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए संगहस्स भंगसमुक्कित्तणया कीरइ । [११७ प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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