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________________ ७४ अनुयोगद्वारसूत्र असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध आनुपूर्वी में ही अन्तर्भूत होते हैं। अतएव जब सब आनुपूर्वीद्रव्य शेष समस्त द्रव्यों से भी असंख्यातगुणे हैं तो फिर अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुणे तो स्वयमेव सिद्ध हैं। ____ अनानुपूर्वीद्रव्य (परमाणु) आनुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातवें भाग हैं तथा अवक्तव्यद्रव्य आनुपूर्वी और अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा असंख्यातवें भाग जानना चाहिए, जिसके लिए सूत्र में संकेत किया है— असंखेज्जइभागे होज्जा। भावप्ररूपणा ११३. (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कयरम्मि भावे होजा ? किं उदइए भावे होजा ? उवसमिए भावे होजा ? खाइए भावे होज्जा ? खाओवसमिए भावे होजा ? पारिणामिए भावे होज्जा ? सन्निवाइए भावे होजा ? णियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा ।। [११३-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में वर्तते हैं ? क्या औदयिक भाव में, औपशमिक भाव में, क्षायिक भाव में, क्षयोपशमिक भाव में, पारिणामिक भाव में अथवा सान्निपातिक भाव में वर्तते हैं ? __ [११३-१ उ.] आयुष्मन् ! समस्त आनुपूर्वीद्रव्य सादि-पारिणामिक भाव में होते हैं। (२) अणाणुपुत्वीदव्वाणि अवत्तव्वयदव्वाणि य एवं चेव भाणियव्वाणि । [११३-२] अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। अर्थात् वे भी सादि-पारिणामिक भाव में हैं। विवेचन— आनुपूर्वी आदि द्रव्यों में सादि-पारिणामिक भाव होता है, जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है द्रव्य का विभिन्न रूपों में होने वाले परिणमन—परिवर्तन को परिणाम कहते हैं और यह परिणाम ही पारिणामिक है। अथवा परिणमन या उससे जो निष्पन्न हो उसे पारिणामिक कहते हैं। यह पारिणामिकभाव सादि और अनादि के भेद से दो प्रकार का है। अनादि परिणमन तो लोकनियामक रूपी और अरूपी द्रव्यों में से धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्यों का होता है और वह उनका स्वभावत: उस रूप में अनादि काल से होता चला आ रहा है और अनन्तकाल तक होता रहेगा। लेकिन रूपी पुद्गलद्रव्य में जो परिणमन होता है, वह सादि-परिणाम है। मेघपटल, इन्द्रधनुष आदि पौद्गलिक द्रव्यों के परिणमन में अनादिता का अभाव है। क्योंकि पुद्गलों का जो विशिष्ट रूप में परिणमन होता है वह उत्कृष्ट रूप से भी असंख्यात काल तक ही स्थायी रहता है। इसलिए समस्त आनुपूर्वीद्रव्य सादि-पारिणामिक भाव वाले हैं। अवक्तव्य द्रव्यों में भी सादि-पारिणामिक भाव जानना चाहिए। अल्पबहुत्वप्ररूपणा ११४. (१) एएसि णं भंते ! णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाणं अणाणुपुव्वीदव्वाणं अवत्तव्वयदव्वाण य दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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