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________________ आनुपूर्वीनिरूपण तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोतमा ! सव्वत्थोवाइं णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाइं दव्वट्टयाए, अणाणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्टयाए विसेसाहियाइं, आणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई | ७५ [११४-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्यों, अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों में से द्रव्य, प्रदेश और द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा कौन द्रव्य किन द्रव्यों की अपेक्षा अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [११४ - १ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य सबसे स्तोक (अल्प) हैं, अवक्तव्यद्रव्यों की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य, द्रव्य की अपेक्षा विशेषाधिक हैं और द्रव्यापेक्षा आनुपूर्वीद्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्यातगुणे होते हैं । णेगम-ववहाराणं (२) पएसट्टयाए सव्वत्थोवाई अणाणुपुव्वीदव्वाइं अपएसट्टयाए, अवत्तव्वयदव्वाइं पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाइं पएसट्टयाए अनंतगुणाई । [११४-२] प्रदेश की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वीद्रव्य अप्रदेशी होने से सर्वस्तोक हैं, प्रदेशों की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक और आनुपूर्वीद्रव्य अवक्तव्य द्रव्यों से अनन्तगुणे हैं । (३) दव्वट्ठ-पएसट्टयाए सव्वत्थोवाइं णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्टयाए, अावदव्वा दव्वट्टयाए अपएसट्टयाए विसेसाहियाई, अवत्तव्वगदव्वाइं पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई, ताइं चेव परसट्टयाए अनंतगुणाई । से तं - ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी । [११४-३] द्रव्य और प्रदेश से अल्पबहुत्व नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य-द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प हैं। द्रव्य और अप्रदेशार्थता की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक हैं, प्रदेश की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य विशेषाधिक हैं, आनुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुण और वही प्रदेश की अपेक्षा अनन्तगुण हैं । इस प्रकार से अनुगम का वर्णन पूर्ण हुआ एवं साथ ही नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई । विवेचन — सूत्रकार ने नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का द्रव्य, प्रदेश और उभय की अपेक्षा अल्पबहुत्व बतलाया है। स्पष्टीकरण इस प्रकार है द्रव्यार्थ से अवक्तव्यद्रव्य सर्वस्तोक, उनसे अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक और उनसे आनुपूर्वीद्रव्य असंख्यातगुण होने में वस्तुस्वभाव कारण है। दूसरी बात यह है कि अनानुपूर्वी द्रव्य - परमाणु में एक और अवक्तव्यद्रव्य में द्विप्रदेशीस्कन्ध रूप एक स्थान ही लभ्य है, परन्तु आनुपूर्वीद्रव्य में त्र्यणुकस्कन्ध से लगातार एकोत्तर वृद्धि सेएक-एक प्रदेश की उत्तरोत्तर वृद्धि होने से अनन्ताणुक स्कन्ध पर्यन्त अनन्त स्थान हैं। इसीलिए आनुपूर्वीद्रव्य, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुणे बताये हैं । प्रदेशों की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य को सबसे कम बताने का कारण यह है कि यदि परमाणु रूप इन अनानुपूर्वी द्रव्यों में भी द्वितीय आदि प्रदेश मान लिये जायें तो प्रदेशार्थता से भी अनानुपूर्वीद्रव्यों की अवक्तव्यद्रव्यों
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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