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आनुपूर्वीनिरूपण
७३ संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेजेसु भागेसु होज्जा ? असंखेजेसु भांगेसु होजा?
नो संखेजइभागे होज्जा नो असंखेज्जइभागे होजा नो संखेजेसु भागेसु होज्जा नियमा असंखेजेसु भागेसु होज्जा ।
[११२-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत समस्त आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग हैं ? क्या संख्यात भाग हैं ? असंख्यात भाग हैं अथवा संख्यात भागों या असंख्यात भागों रूप हैं ?
[११२-१ उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात भाग, असंख्यात भाग अथवा संख्यात भागों रूप नहीं हैं, परन्तु नियमत: असंख्यात भागों रूप हैं।
(२) णेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्वीदव्वाइं सेसदव्वाणं कइभागे होजा ? किं संखेजइभागे होजा ? असंखेजइभागे होजा ? संखेजेसु भागेसु होज्जा ? असंखेजेसु भागेसु होजा ?
नो संखेजइभागे होजा असंखेजइभागे होजा नो संखेजेसु भागेसु होजा नो असंखेजेसु भागेसु होजा ।
[११२-२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वीद्रव्य शेषद्रव्यों के कितनेवें भाग होते हैं ? क्या संख्यात भाग होते हैं ? असंख्यात भाग होते हैं ? संख्यात भागों रूप होते हैं ? अथवा असंख्यात भागों रूप होते हैं ?
[११२-२ उ.] आयुष्मन् ! अनानुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात भाग नहीं होते हैं, संख्यात भागों अथवा असंख्यात भागों रूप नहीं होते हैं। किन्तु असंख्यात भाग होते हैं।
(३) एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । [११२-३] अवक्तव्य द्रव्यों सम्बन्धी कथन भी उपर्युक्तानुरूप असंख्यात भाग समझना चाहिए।
विवेचन— सूत्र में यह स्पष्ट किया है कि आनुपूर्वीद्रव्य (त्र्यणुकादि स्कन्ध) अनानुपूर्वीद्रव्य (परमाणु) और अवक्तव्यद्रव्य (व्यणुकस्कन्ध) कितन्नवें भाग होते हैं ? इसका अभिप्राय यह है कि आनुपूर्वीद्रव्य, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों से अधिक हैं या कम ? इसके उत्तर के लिए सूत्र में पद दिया—'नियमा असंखेजेसु भागेसु होजा।' अर्थात् ये शेष द्रव्यों के असंख्यात भागों रूप अधिक हैं।
शेष द्रव्यों की अपेक्षा समस्त आनुपूर्वीद्रव्य अधिक इसलिए हैं कि अनानुपूर्वी द्रव्य परमाणु रूप हैं और अवक्तव्यद्रव्य व्यणुक रूप हैं तथा आनुपूर्वीद्रव्य त्र्यणुक आदि स्कन्ध से लेकर अनन्ताणुकस्कन्ध पर्यन्त हैं। इसलिए ये आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यात भागों से अधिक हैं। यही कथन निम्नलिखित आगमिक उद्धरण से स्पष्ट है
'एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखिज्जपएसियाणं असंखेजपएसियाणं अणंतपएसियाण य खंधाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा, परमाणुपोग्गला अणंतगुणा संखिज्जपएसिआ खंधा संखिजगुणा असंखेजपएसिया खंधा असंखेजगुणा।' [अनुयोग. वृत्ति प. ६६]
इस सूत्र में समस्त पुद्गल जाति की अपेक्षा से उसके असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध असंख्यातगुणे कहे हैं और ये