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________________ ७२ अनुयोगद्वारसूत्र [१११-३ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्यों का कालापेक्षया अन्तर कितना है ? [१११-३ उ.] आयुष्मन् ! एक अवक्तव्यद्रव्य की अपेक्षा अंतर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है, किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है। . विवेचन— सूत्र के तीन विभागों में क्रमशः आनुपूर्वीद्रव्यों, अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों का एक और अनेक की अपेक्षा से कालापेक्षया अंतर बताया है कि आनुपूर्वी आदि द्रव्य आनुपूर्वी आदि स्वरूप का परित्याग करके पुनः उसी आनुपूर्वी स्वरूप को कितने काल के व्यवधान से प्राप्त करते हैं। वह इस प्रकार है एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य अंतर एक समय का, उत्कृष्ट अंतर अनन्तकाल का है। नाना द्रव्यों की अपेक्षा अंतर नहीं होने का भाव इस प्रकार जानना चाहिए कि त्र्यणुक, चतुरणुक आदि आनुपूर्वीद्रव्यों में से कोई एक आनुपूर्वीद्रव्य स्वाभाविक अथवा प्रायोगिक परिणमन से खंड-खंड होकर आनुपूर्वी पर्याय से रहित हो जाए और पुनः वही द्रव्य एक समय के बाद स्वाभाविक आदि परिणाम के निमित्त से उन्हीं परमाणुओं के संयोग से विवक्षित आनुपूर्वी रूप बन जाए तो इस प्रकार एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा आनुपूर्वी स्वरूप के परित्याग और पुनः उसी स्वरूप में आने के बीच में एक समय का जघन्य अंतर पड़ा। इसीलिए एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य अंतरकाल एक समय का बताया है। .. उत्कृष्ट अंतरकाल अनन्त काल इस प्रकार है—कोई एक विवक्षित आनुपूर्वीद्रव्य पूर्वोक्त रीति से आनुपूर्वीपर्याय से रहित हो गया और निर्गत वे परमाणु अन्य व्यणुक, त्र्यणुक आदि से लेकर अनन्तप्रदेशीस्कन्ध पर्यन्त रूप अनन्त स्थानों में प्रत्येक उत्कृष्ट काल की स्थिति का अनुभव करते हुए संश्लिष्ट रहे। इस प्रकार प्रत्येक व्यणुक आदि अनन्त स्थानों में अनन्त काल तक संश्लिष्ट होते-होते अनन्त काल समाप्त होने पर जब उन्हीं परमाणुओं द्वारा वही विवक्षित आनुपूर्वीद्रव्य पुनः निष्पन्न हो तब यह अनन्त काल का उत्कृष्ट अन्तर होता है। नाना आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा काल का अन्तर नहीं बताने का कारण यह है कि लोक में अनन्तानन्त आनुपूर्वीद्रव्य सर्वदा विद्यमान रहते हैं। इसलिए ऐसा कोई समय नहीं है कि जिसमें समस्त आनुपूर्वीद्रव्य अपनी आनुपूर्वीरूपता का एक साथ परित्याग कर देते हों। एक अनानुपूर्वीद्रव्य का जघन्य अन्तर एक समय होने का और अनेक की अपेक्षा अन्तर नहीं होने का कथन तथा अवक्तव्यद्रव्यों का एक–अनेकापेक्षया जघन्य –उत्कृष्ट अन्तर आनुपूर्वी द्रव्यवत् है। लेकिन एक अनानुपूर्वी द्रव्य की अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात काल प्रमाण बताने का कारण यह है कि परमाणु रूप अनानुपूर्वीद्रव्य किसी भी स्कन्ध के साथ अधिक से अधिक असंख्यात काल तक संयुक्त अवस्था में रहता है। इसीलिए असंख्यात काल का उत्कृष्ट अन्तर जानना चाहिए। असंख्यात काल तक संयुक्त रहने में पुद्गलस्वभाव कारण है। काल की तरह क्षेत्र की अपेक्षा भी अन्तर होता है। जैसे कि इस पृथ्वी से सूर्य का अन्तर आठ सौ योजन है। इसीलिए सूत्र में क्षेत्रगत अन्तर के परिहारार्थ काल पद का प्रयोग किया है कि यहां कालापेक्षया अन्तर का विचार करना अभीष्ट है, क्षेत्रकृत अन्तर का नहीं। भागप्ररूपणा ११२. (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाई सेसदव्वाणं कइभागे होजा ? किं
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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