SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनुपूर्वीनिरूपण ७१ उत्पन्न हो जाता है और एक समय के बाद ही उसमें से एक आदि परमाणु के छूट जाने पर वह आनुपूर्वीद्रव्य उस रूप से विनष्ट हो जाता है। इस अपेक्षा आनुपूर्वीद्रव्य का आनुपूर्वी के रूप में रहने का काल जघन्य एक समय होता है और जब वही एक आनुपूर्वीद्रव्य असंख्यात काल तक उसी आनुपूर्वीद्रव्य के रूप में रहकर एक आदि परमाणु से वियुक्त होता है तब उसकी अवस्थिति का उत्कृष्ट असंख्यात काल जानना चाहिए। अनेक आनुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा तो इन आनुपूर्वीद्रव्यों की स्थिति नियमतः सार्वकालिक है। क्योंकि ऐसा कोई काल नहीं कि जिसमें ये आनुपूर्वीद्रव्य न हों। किसी भी एक आनुपूर्वीद्रव्य का आनुपूर्वी रूप में रहने का काल अनन्त नहीं है। क्योंकि पुद्गलसंयोग की उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल की ही होती है, इससे अधिक नहीं। अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का भी एक और अनेक की अपेक्षा उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति काल आनुपूर्वीद्रव्यवत् जानना चाहिए। यहां प्रयुक्त ‘एवं दोन्नि वि' सूत्र के स्थान पर किसी-किसी प्रति में 'अणाणुपुव्वी दव्वाइं अवक्तव्वगदव्वाइं च एवं चेव भाणिअव्वाई' पाठ है और तदनुरूप उसकी व्याख्या की है। लेकिन शब्दभेद होने पर भी दोनों के आशय में अंतर नहीं है. मात्र संक्षेप और विस्तार की अपेक्षा है। अन्तरप्ररूपणा १११. (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाणमंतरं कालतो केवचिरं होति ? . ___एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं । [१११-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्यों का कालापेक्षया अंतर–व्यवधान कितना होता है ? [१११-१ उ.] आयुष्मन् ! एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल का अंतर होता है, किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अंतर—विरहकाल नहीं है। (२) णेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्वीदव्वाणं अंतरं कालतो केवचिरं होइ ? एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेजं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं । [१११-२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वीद्रव्यों का काल की अपेक्षा अंतर कितना होता है ? [१११-२ उ.आयुष्मन् ! एक अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा अन्तरकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल प्रमाण है तथा अनेक अनानुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा अंतर नहीं है। (३) णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाणं अंतरं कालतो केवचिरं होति ? ___एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च णत्थि अंतरं ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy