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अनुयोगद्वारसूत्र
फुसंति, नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति ।
[१०९-२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? इत्यादि प्रश्न है।
[१०९-२ उ.] आयुष्मन् ! एक-एक अनानुपूर्वी की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं किन्तु असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संख्यात भागों का, असंख्यात भागों का या सर्वलोक का स्पर्श नहीं करते हैं। किन्तु अनेक अनानुपूर्वी द्रव्यों की अपेक्षा तो नियमतः सर्वलोक का स्पर्श करते हैं।
(३) एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि भाणियव्वाणि । [१०९-३] अवक्तव्य द्रव्यों की स्पर्शना भी इसी प्रकार समझना चाहिए।
विवेचन– सूत्र में आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा स्पर्शना का विचार किया है। सूत्रार्थ सुगम है और प्रश्नोत्तर का प्रकार क्षेत्रप्ररूपणा के समान ही. जानना चाहिए। लेकिन क्षेत्र और स्पर्शना में यह अंतर है कि परमाणुद्रव्य की जो अवगाहना एक आकाश प्रदेश में होती है, वह क्षेत्र है तथा परमाणु के द्वारा अपने निवासस्थानरूप एक आकाशप्रदेश के अतिरिक्त चारों ओर तथा ऊपर-नीचे के प्रदेशों के स्पर्श को स्पर्शना कहते हैं। परमाणु की स्पर्शना आकाश के सात प्रदेशों की इस प्रकार है—चारों दिशाओं के चार प्रदेश, ऊपर-नीचे के दो प्रदेश एवं एक वह प्रदेश जहां स्वयं उसकी अवगाहना है। इस प्रकार अनानुपूर्वी द्रव्य की कुल मिलाकर सात प्रदेशों की स्पर्शना होती है। यद्यपि परमाणु निरंश है, एक है, तथापि सात प्रदेशों के साथ उसकी स्पर्शना होती है। कालप्ररूपणा
११०. (१) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्वीदव्वाइं कालओ केवचिरं होंति ?
एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च णियमा सव्वद्धा ।
[११०-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य काल की अपेक्षा कितने काल तक (आनुपूर्वीद्रव्य रूप में) रहते हैं ?
[११०-१ उ.] आयुष्मन् ! एक आनुपूर्वीद्रव्य जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट असंख्यात काल तक उसी स्वरूप में रहता है और विविध आनुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा नियमतः स्थिति सार्वकालिक है।
(२) एवं दोन्नि वि । [११०-२ ] इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति भी जानना चाहिए।
विवेचन— सूत्र में आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का एक और अनेक की अपेक्षा से उन्हीं आनुपूर्वी आदि द्रव्यों के रूप में रहने के काल का कथन किया गया है।
आनुपूर्वीद्रव्य का आनुपूर्वीद्रव्य के रूप में रहने का जघन्य एक समयरूप और उत्कृष्ट असंख्यात काल इस प्रकार घटित होता है कि परमाणुद्वय आदि में दूसरे एक आदि परमाणुओं के मिलने पर एक अपूर्व आनुपूर्वीद्रव्य