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________________ ६८ अनुयोगद्वारसूत्र क्या लोक के संख्यातवें भाग में अवगाढ हैं ? असंख्यातवें भाग में अवगाढ हैं ? क्या संख्यात भागों में अवगाढ हैं ? • असंख्यात भागों में अवगाढ हैं ? अथवा समस्त लोक में अवगाढ हैं ? [१०८-१ उ.] आयुष्मन् ! किसी एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा कोई लोक के संख्यातवें भाग में अवगाढ है, कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य लोक के असंख्यातवें भाग में रहता है तथा कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यात भागों में रहता है और कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यात भागों में रहता है और कोई एक द्रव्य समस्त लोक में अवगाढ होकर रहता है। किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा तो वे नियमतः समस्त लोक में अवगाढ हैं। [ २ ] नेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्वीदव्वाइं किं लोगस्स संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज़ा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए वा होज्जा ? एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइभागे होज्जा असंखेज्जइभागे होज्जा नो संखेज्जेसु भागेसु होजा नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा नो सव्वलोए होज्जा, णाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए होज्जा । [१०८-२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुंपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में अवग हैं ? असंख्यात भाग में अवगाढ हैं ? संख्यात भागों में हैं या असंख्यात भागों में हैं अथवा समस्त लोक में अवगाढ हैं ? [१०८-२ उ.] आयुष्मन् ! एक अनानुपूर्वी द्रव्य की अपेक्षा वह लोक के संख्यातवें भाग में अवगाढ नहीं है, असंख्यातवें भाग में अवगाढ है, न संख्यात भागों में, न असंख्यात भागों में और न सर्वलोक में अवगाढ है, किन्तु अनेक अनानुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा नियमतः सर्वलोक में अवगाढ है। (३) एवं अवत्तव्वगदव्वाणि वि । [१०८-३] इसी प्रकार अवक्तव्यद्रव्य के विषय में भी जानना चाहिए। (यह क्षेत्र प्ररूपणा का आशय है ।) विवेचन—–— सूत्र में आनुपूर्वी आदि द्रव्यों के क्षेत्र विषयक पांच प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। वे पांच प्रश्न इस प्रकार हैं १. आनुपूर्वी आदि द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग में रहते हैं ? अथवा २. असंख्यातवें भाग में रहते हैं ? अथवा ३. लोक के संख्यात भागों में रहते हैं ? अथवा ४. असंख्यात भागों में रहते हैं ? अथवा ५. समस्त लोक में रहते हैं ? यह पूर्व में बताया जा चुका है कि कम से कम त्र्यणुक स्कन्ध आनुपूर्वीद्रव्य है तथा द्व्यणुक स्कन्ध और परमाणु क्रमशः अवक्तव्य एवं अनानुपूर्वी द्रव्य हैं। यह त्र्यणुक आदि का व्यवहार पुद्गलद्रव्य में ही होता है। अतएव पुद्गलद्रव्य का आधार यद्यपि सामान्य से तो लोकाकाश रूप क्षेत्र नियत है । परन्तु विशेष रूप से भिन्न-भिन्न पुद्गलद्रव्यों के आधारक्षेत्र के परिमाण में अंतर होता है । अर्थात् आधारभूत क्षेत्र के प्रदेशों की संख्या आधेयभूत पुद्गलद्रव्य के परमाणुओं की संख्या से न्यून या उसके बराबर हो सकती है, अधिक नहीं। इसलिए एक परमाणु
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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