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________________ आनुपूर्वीनिरूपण [१०४-३ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य कहां समवतरित होते हैं ? क्या आनुपूर्वीद्रव्यों में अथवा अनानुपूर्वीद्रव्यों में या अवक्तव्यकद्रव्यों में समवतरित होते हैं ? [१०४-३ उ.] आयुष्मन् ! अवक्तव्यकद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में और अनानुपूर्वीद्रव्यों में समवतरित नहीं होते हैं किन्तु अवक्तव्यकद्रव्यों में समवतरित होते हैं। यह समवतार की वक्तव्यता है। विवेचन- सूत्रकार ने सूत्र में कौन द्रव्य किसमें समवतरित होता है, यह स्पष्ट किया है। समवतार का तात्पर्य है समावेश अर्थात् आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का बिना किसी विरोध के अपनी जाति में रहना, जात्यन्तर में नहीं रहने का और कार्य में कारण का उपचार करके 'आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का अन्तर्भाव स्वस्थान में होता है, या परस्थान में, इस प्रकार के चिन्तनप्रकार विचार के उत्तर को भी समवतार कहते हैं। यह विचार किस प्रकार से किया जाता है ? उसको सूत्र में स्पष्ट किय है। अविरुद्ध रूप से आनुपूर्वीद्रव्य–त्रिप्रदेशिक आदि स्कन्ध आनुपूर्वीद्रव्य में, अनानुपूर्वी द्रव्य–परमाणुपुद्गल—अनानुपूर्वीद्रव्य में और अवक्तव्यद्रव्यद्विप्रदेशिकस्कन्ध अवक्तव्यद्रव्य में अविरोध रूप से अपनी जाति में बिना विरोध के रहते हैं। इस प्रकार की अविरोधवृत्तिता स्वजातीय पदार्थ में ही हो सकती है, इतर जाति में नहीं। आनुपूर्वीद्रव्यों का समवतार यदि परजाति में भी माना जाए तो परजाति में रहने पर उसमें स्वजाति में रहने की अविरोधवृत्तिता नहीं बन सकेगी। इससे यह सिद्धान्त प्रतिफलित हुआ कि नाना देशवर्ती समस्त आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में रहते हैं, परजाति में नहीं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों के लिए भी समझ लेना चाहिए।' अनुगमप्ररूपणा १०५. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे णवविहे पण्णत्ते । तं जहा संतपयपरूवणया १ दव्वपमाणं च २ खेत्त ३ फुसणा य ४ । कालो य ५ अंतरं ६ भाग ७ भाव ८ अप्पाबहुं ९ चेव ॥ ८॥ [१०५ प्र.] भगवन् ! अनुगम का क्या स्वरूप है ? [१०५ उ.] आयुष्मन् ! अनुगम नौ प्रकार का कहा गया है। जैसे—१. सत्पदप्ररूपणा, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर, ७. भाग, ८. भाव और ९. अल्पबहुत्व। विवेचन–सूत्र में नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के अन्तिम भेद अनुगम की वक्तव्यता प्रारम्भ की है। अनुगम- सूत्र के अनुकूल अथवा अनुरूप व्याख्यान करने की विधि को अनुगम कहते हैं। अथवा सूत्र पढ़ने के पश्चात् उसका व्याख्यान करना अनुगम है। इस अनुगम के सत्पदप्ररूपणा आदि नौ भेद हैं, जिनके लक्षण इस प्रकार हैं___सत्पदप्ररूपणा— विद्यमान पदार्थविषयक पद की प्ररूपणा को कहते हैं। जैसे आनुपूर्वी आदि द्रव्य सत् पदार्थ के वाचक हैं, असत् पदार्थ के वाचक नहीं, ऐसी प्ररूपणा करना। अनुगम करते समय यह प्रथम करने योग्य
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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