________________
६०
अनुयोगद्वारसूत्र अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य ३ अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वीओ य ट्क', अहवा अस्थि आणुपुव्वी य अवतव्वए य १ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अवत्तव्वयाई च २ अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य ३ अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च ट्रक, अहवा अत्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य १ अहवा अत्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च २ अहवा अत्थि अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य ३ अहवा अत्थि अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च टक। अहवा अस्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य १ अहवा अस्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वयाइं च २ अहवा अत्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य ३ अहवा अस्थि आणुपुव्वी य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च ट्क अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य अवत्तव्वए य ५ अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वी य अवत्तंव्वयाइं च ६ अहवा अस्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वए य ७ अहवा अत्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तव्वयाइं च ८, एए अट्ठ भंगा । एवं सव्वे वि छव्वीसं भंगा । से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ।
[१०१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तन का क्या स्वरूप है ? - [१०१ उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तन का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए
१. आनुपूर्वी है, २. अनानुपूर्वी है, ३. अवक्तव्य है, ४. आनुपूर्वियां हैं, ५. अनानुपूर्वियां हैं, ६. (अनेक) अवक्तव्य हैं। अथवा
१. आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, २. आनुपूर्वी और अनानुपूर्वियां हैं, ३. आनुपूर्वियां और अनानुपूर्वी हैं, ४ आनुपूर्वियां और अनानुपूर्वियां हैं । अथवा___ १. आनुपूर्वी और अवक्तव्यक है, २. आनुपूर्वी और (अनेक) अवक्तव्य हैं, ३. आनुपूर्वियां और अवक्तव्य है, ४. आनुपूर्वियां और (अनेक) अवक्तव्य हैं। अथवा
१. अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है, २. अनानुपूर्वी और (अनेक) अवक्तव्य हैं, ३. अनानुपूर्वियां और (एक)अवक्तव्य है, ४. अनानुपूर्वियां और अनेक अवक्तव्य हैं । अथवा
१. आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है, २. आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अनेक अवक्तव्य हैं, ३. आनुपूर्वी, अनानुपूर्वियां और अवक्तव्य है, ४. आनुपूर्वी, अनानुपूर्वियां और अनेक अवक्तव्य हैं, ५. आनुपूर्वियां, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है, ६. आनुपूर्वियां, अनानुपूर्वी और अनेक अवक्तव्य हैं, ७. आनुपूर्वियां, अनानुपूर्वियां और अवक्तव्य है, ८. आनुपूर्वियां, अनानुपूर्वियां और अनेक अवक्तव्य हैं, इस प्रकार यह आठ भंग हैं। __ ये सब मिलकर छब्बीस भंग होते हैं। यह नैगम-व्यवहारनयसम्मतभंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप है।
विवेचन- सूत्र में नैगम-व्यवहारनयसम्मत छब्बीस भंगों का समुत्कीर्तन (कथन) किया है। जो परस्पर संयोग और असंयोग की अपेक्षा से बनते हैं । इन छब्बीस भंगों के मूल आधार आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य
१. 'ट्क' चार (४) संख्या का द्योतक अक्षरांक है।