SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुयोगद्वारसूत्र भंगसमुत्कीर्तनता— आनुपूर्वी आदि के पदों से निष्पन्न हुए पृथक् पृथक् भंगों का और संयोगज दो आदि भंगों का संक्षेपरूप में कथन करना भंगसमुत्कीर्तनता है । भंगोपदर्शनता — सूत्र रूप में उच्चारित हुए उन्हीं भंगों में से प्रत्येक भंग का अपने अभिधेय रूप त्र्यणुकादि अर्थ के साथ उपदर्शन—कथन करना । अर्थात् भंगसमुत्कीर्तन में तो मात्र भंगविषयक सूत्र का ही उच्चारण होता है और भंगोपदर्शन में वही सूत्र अपने विषयभूत अर्थ के साथ कहा जाता है। यही दोनों में अन्तर है । समवतार — आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का स्वस्थान और परस्थान में अन्तर्भाव होने के विचारों के प्रकार का नाम समवतार है। ५८ अनुगम— आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का सत्पदप्ररूपणा आदि अनुयोगद्वारों से विचार करना अनुगम है। नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा और प्रयोजन ९९. से किं तं णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? णेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया तिपएसिए आणुपुव्वी, चउपएसिए आणुपुव्वी जाव दसपएसिए आणुपुव्वी, संखेज्जपदेसिए आणुपुव्वी, असंखेज्जपदेसिए आणुपुव्वी, अनंतपएसिए आणुपुवी । परमाणुपोग्गले अणाणुपुव्वी । दुपएसिए अवत्तव्वए । तिपएसिया आणुपुव्वीओ जाव अणतपएसिया आणुपुव्वीओ । परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ । दुपएसिया अवत्तव्वगाई । से तं गम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया । [९९ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपद की प्ररूपणा का क्या स्वरूप है ? [९९ उ.] आयुष्मन् ! (तीन प्रदेश वाला) त्र्यणुकस्कन्ध आनुपूर्वी है। इसी प्रकार चतुष्प्रदेशिक आनुपूर्वी यावत् दसप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है। किन्तु परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी रूप है । द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है । अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनेक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वियाँ—अनेक आनुपूर्वी रूप हैं। अनेक पृथक्-पृथक् पुद्गल परमाणु अनेक अनानुपूर्वी रूप हैं। अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनेक अवक्तव्य हैं। इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा का स्वरूप जानना चाहिए । विवेचन — सूत्र में नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा की व्याख्या की गई है। यहां यह समझना चाहिए कि आनुपूर्वी परिपाटी को कहते हैं और परिपाटी रूप आनुपूर्वी वहीं होती है जहां आदि, मध्य और अन्त रूप गणना का व्यवस्थित क्रम होता है। ये आदि, मध्य और अन्त त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध एवं स्कन्धों में होते हैं। इसलिए इनमें प्रत्येक स्कन्ध आनुपूर्वी रूप होता है । परमाणु अनानुपूर्वी रूप क्यों ? – एक परमाणु अथवा पृथक्-पृथक् स्वतंत्र सत्ता वाले अनेक परमाणुओं में आदि, मध्य और अंतरूपता नहीं होने से वे अनानुपूर्वी हैं। आनुपूर्वीरूपता उनमें संभव नहीं है। द्विप्रदेशिक स्कन्ध की अवक्तव्यता का कारण— यद्यपि द्विप्रदेशिक स्कन्ध में दो परमाणु संश्लिष्ट रहते हैं, इसलिए यहां अन्योन्यापेक्षा पूर्वस्य अनु-पश्चात् — अर्थात् एक के बाद दूसरा, इस प्रकार की अनुपूर्वरूपता— आनुपूर्वी है। किन्तु मध्य के अभाव में संपूर्ण गणनानुक्रम नहीं बन पाने से द्विप्रदेशिक स्कन्ध में गणनानुक्रमात्मक
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy