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आनुपूर्वीनिरूपण
भावोपक्रम का वर्णन किया है, वह गुरुभावोपक्रम रूप है। पूर्व में आदि शब्द से ग्रहण किये गये शास्त्रीय भावोपक्रम का वर्णन यहां प्रस्तुत है। आनुपूर्वी आदि प्रकारों द्वारा किये जाने से उसके छह भेद हो जाते हैं । आनुपूर्वी निरूपण
९३. से किं तं आणुपुव्वी ?
अणुवी दसविहा पण्णत्ता । तं जहा— नामाणुपुव्वी १ ठवणाणुपुव्वी २ दव्वाणुपुव्वी ३ खेत्ताणुपुव्वी ४ कालाणुपुव्वी ५ उक्कित्तणाणुपुव्वी ६ गणणाणुपुव्वी ७ संठाणाणुपुव्वी ८ सामायारियाणुपुव्वी ९ भावाणुपुव्वी १० ।
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[९३ प्र.] भगवन् ! आनुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[९३ उ.] आयुष्मन् ! आनुपूर्वी दस प्रकार की है। वह इस प्रकार – १. नामानुपूर्वी, २. स्थापनानुपूर्वी, ३. द्रव्यानुपूर्वी, ४. क्षेत्रानुपूर्वी, ५. कालानुपूर्वी, ६. उत्कीर्तनानुपूर्वी, ७. गणनानुपूर्वी, ८. संस्थानानुपूर्वी, ९. समाचार्यानुपूर्वी, १०. भावानुपूर्वी ।
विवेचन—–— सूत्र में शास्त्रोपक्रम के प्रथम भेद आनुपूर्वी के दस नामों को गिनाया । जिनका यथाक्रम विवेचन आगे किया जाएगा।
आनुपूर्वी — आनुपूर्वी, अनुक्रम एवं परिपाटी, ये आनुपूर्वी के पर्यायवाची शब्द हैं। अतः अर्थ यह हुआ कि अनुक्रम — एक के पीछे दूसरा ऐसी परिपाटी को आनुपूर्वी कहते हैं – पूर्वस्य अनु – पश्चादनुपूर्वं : तस्य भावः आनुपूर्वी ।
नाम - स्थापना आनुपूर्वी
९४. से किं तं णामाणुपुव्वी ? नाम-ठवणाओ तहेव ।
[९४ प्र.] भगवन् ! नाम (स्थापना) आनुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?
[९४ उ.] आयुष्मन् ! नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना
चाहिए।
द्रव्यानुपूर्वी
९५. दव्वाणुपुव्वी जाव से किं तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुव्वी ? जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — उवणिहिया य १ अणोवणिहिया य २ ।
[९५] द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर - भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिए ।
प्र. भगवन् ! ज्ञायकशरीर- भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ?