SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ अनुयोगद्वारसूत्र [८९ उ.] आयुष्मन् ! नोआगमभावोपक्रम दो प्रकार का कहा है। यथा—१. प्रशस्त और २. अप्रशस्त । ९०. से किं तं अपसत्थे भावोवक्कमे ? अपसत्थे भावोवक्कमे डोडिणि-गणिया मच्चाईणं । से तं अपसत्थे भावोवक्कमे । [९० प्र.] भगवन् ! अप्रशस्त भावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [९० उ. ] आयुष्मन् ! डोडणी ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि का अन्य के भावों को जानने रूप उपक्रम अप्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है। ९१. से किं तं पसत्थे भावोवक्कमे ? पसत्थे भावोवक्कमे गुरुमादीणं । से तं पसत्थे भावोवक्कमे । से तं नोआगमतो भावोवक्कमे । से तं भावोवक्कमे । [९१ प्र.] भगवन् ! प्रशस्त भावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [९१ उ.] आयुष्मन् ! गुरु आदि के अभिप्राय को यथावत् जानना प्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है। इस प्रकार से नोआगमभावोपक्रम का और इसके साथ ही भावोपक्रम का वर्णन पूर्ण हुआ जानना चाहिए । विवेचन — सूत्रकार ने यहां सप्रभेद भावोपक्रम का स्वरूप निर्देश करने के साथ भावोपक्रम की वक्तव्यता की समाप्ति का संकेत किया है। भावोपक्रम — स्वभाव, सत्ता, आत्मा, योनि और अभिप्राय ये भाव शब्द के पांच अर्थ हैं। इनमें से यहां अभिप्राय अर्थ ग्रहण किया गया है। अतएव अर्थ यह हुआ कि भाव अभिप्राय के यथावत् परिज्ञान को भावोपक्रम कहते हैं और उपक्रम शब्द के अर्थ के ज्ञान के साथ उसके उपयोग से युक्त जीव आगमभावोपक्रम कहलाता है। आगमभावोपक्रम के अप्रशस्त और प्रशस्त यह दो भेद होने का कारण यह है कि डोडिणी, ब्राह्मणी आदि ने परकीय अभिप्राय को जाना तो अवश्य किन्तु वह सांसारिक फलजनक होने से अप्रशस्त है। गुरु आदि का अभिप्राय मोक्ष का कारण होने से प्रशस्त है। लौकिक दृष्टि की अपेक्षा यह उपक्रम का वर्णन जानना चाहिए। अब शास्त्रीय पद्धति से उपक्रम का निरूपण करते हैं । उपक्रम वर्णन की शास्त्रीय दृष्टि ९२. अहवा उवक्कमे छव्विहे पण्णत्ते । तं जहा— आणुपुव्वी १ नामं २ पमाणं ३ वत्तव्वया ४ अत्थाहिगारे ५ समोयारे ६ । [९२] अथवा उपक्रम के छह प्रकार हैं । यथा – १. आनुपूर्वी, २. नाम, ३. प्रमाण, ४. वक्तव्यता, ५. अर्थाधिकार १ और ६. समवतार । विवेचन — प्रकारान्तर से उपक्रम के इन भेदों का निर्देश करने का कारण यह है कि पूर्व में जिस प्रशस्त इन दृष्टान्तों के कथानक परिशिष्ट में देखिये । १.
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy