SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपक्रमनिरूपण उसका तो उपक्रम नहीं होता है। किन्तु आधेय रूप में वर्तमान पृथ्वी आदि द्रव्यों का उपक्रम हो सकने से उनका उपक्रम—आधार रूप आकाश में उपचरित कर लिये जाने से उसे क्षेत्रोपक्रम कहते हैं। जैसे कि मञ्चाक्रोशन्ति मंच बोलते हैं, ऐसा जो कहा जाता है वह आधेय रूप पुरुषों आदि को मंच रूप आधार में उपचरित करके कहा जाता है। कालोपक्रम ८६. से किं तं कालोवक्कमे ? कालोवक्कमे जं णं नालियादीहिं कालस्सोवक्कमणं कीरति । से तं कालोवक्कमे । [८६ प्र.] भगवन् ! कालोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [८६ उ.] आयुष्मन् ! नालिका आदि के द्वारा जो काल का यथावत् ज्ञान होता है, वह कालोपक्रम है। विवेचन — सूत्रार्थ स्पष्ट है। नालिका (तांबे का बना पेंदे में से एक छिद्र सहित पात्र - विशेष, जलघड़ी, घड़ी आदि) अथवा कील आदि की छाया द्वारा काल का जो यथार्थ परिज्ञान किया जाता है वह परिकर्मरूप तथा नक्षत्रों आदि की चाल से जो कालविनाश होता है वह वस्तुविनाश रूप कालोपक्रम है। काल द्रव्य का पर्याय है और द्रव्य - पर्याय का मेचकमणिवत् संवलित रूप होने से द्रव्योपक्रम के वर्णन में कालोपक्रम का भी कथन किया जा चुका मानना चाहिए। तथापि समय, आवलिका, मुहूर्त इत्यादि रूप से काल का स्वतंत्र अस्तित्व बताने के लिए कालोपक्रम का पृथक् निर्देश किया है। भावोपक्रम ८७. से किं तं भावोवक्कमे ? भावोक्क दुविहे पण्णत्ते । तं जहा— आगमतो य १ नोआगमतो य २ । ५३ [ ८७ प्र.] भगवन् ! भावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [८७ उ.] आयुष्मन् ! भावोपक्रम के दो प्रकार हैं । वे इस तरह — १. आगमभावोपक्रम, २. नोआगमभावो पक्रम । ८८. से किं तं आगमओ भावोवक्कमे । आगमओ भावोवक्कमे जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावोवक्कमे । [८८ प्र.] भगवन् ! आगमभावोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [८८ उ.] आयुष्मन् ! उपक्रम के अर्थ को जानने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो, वह आगमभावोपक्रम है। 1 ८९. से किं तं नोआगमतो भावोवक्कमे ? नोआगमतो भावोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा — पसत्थे य १ अपसत्थे य २ । [८९ प्र.] भगवन् ! नोआगमभावोपक्रम का स्वरूप क्या है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy