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मिश्रद्रव्योपक्रम
अनुयोगद्वारसूत्र
८४. से किं तं मीसए दव्वोवक्कमे ?
मीस दव्वोवक्कमे से चेव थासग आयंसगाइमंडिते आसादी । से तं मीसए दव्वोवक्कमे । से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वोवक्कमे । से तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे । से तं दव्वोवक्कमे ।
[८४ प्र.] भगवन् ! मिश्रद्रव्योपक्रम का क्या स्वरूप है ?
[८४ उ.] आयुष्मन् ! स्थासक, दर्पण आदि से विभूषित एवं (कुंकुम आदि से) मंडित अश्वादि सम्बन्धी उपक्रम को मिश्रद्रव्योपक्रम कहते हैं ।
इस प्रकार से ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्योपक्रम का स्वरूप जानना चाहिए और इसके साथ ही नोआगमद्रव्योपक्रम एवं द्रव्योपक्रम की वक्तव्यता पूर्ण हुई ।
विवेचन— अचित्तद्रव्योपक्रम की व्याख्या सुगम है, अचित्त पदार्थों में गुणात्मक वृद्धि अथवा उनको नष्ट करने के लिए किया जाने वाला प्रयत्न अचित्तद्रव्योपक्रम कहलाता है।
मिश्रद्रव्योपक्रम के विषय में यह जानना चाहिए— अश्व, बैल आदि सचित्त हैं और स्थासक, आदर्श, कुंकुम आदि अचित्त हैं। मिश्र शब्द द्वारा इन दोनों का बोध कराया है। ऐसे विभूषित, मंडित अश्वादि को शिक्षण देकर विशेष गुणों से युक्त करना परिकर्मरूप द्रव्योपक्रम है एवं तलवार आदि के द्वारा उनका प्राणनाश करना आदि वस्तुविनाशरूप द्रव्योपक्रम है।
शब्दार्थ - थासग (स्थासक ) - अश्व को विभूषित करने वाला आभूषण । आयंसग (आदर्श) – बैल आदि के गले का दर्पण जैसा चमकीला आभूषण विशेष ।
क्षेत्रोपक्रम
८५. से किं तं खेत्तोवक्कमे ?
खेत्तवक्कमे जणं हल - कुलियादीहिं खेत्ताइं उवक्कामिज्जंति । से तं खेत्तोवक्कमे ।
[८५ प्र.] भगवन् ! क्षेत्रोपक्रम का क्या स्वरूप है ?
[८५ उ.] आयुष्मन् ! हल, कुलिक आदि के द्वारा जो क्षेत्र को उपक्रान्त किया जाता है, वह क्षेत्रोपक्रम है।
विवेचन— यहां संक्षेप में क्षेत्रोपक्रम का स्वरूप बतलाया है और क्षेत्र शब्द से गेहूं आदि अन्न को उत्पन्न करने वाले स्थान —खेत को ग्रहण किया है। अतएव हल और कुलिक —खेत में से तृणादि को हटाने के काम में आने वाला एक प्रकार का हल (देशी भाषा में इसे 'बखर' कहते हैं ।) से जोतकर खेत को बीजोत्पादन योग्य बनाना परिकर्म विषयक क्षेत्रोपक्रम है और उसी क्षेत्र को हाथी आदि बांध कर बीजोत्पादन के अयोग्य (बंजर) बना देना विनाश-विषयक क्षेत्रोपक्रम है। क्योंकि हाथी के मल-मूत्र से खेत की बीजोत्पादन शक्ति का नाश हो जाता है।
यद्यपि परिकर्म और विनाश क्षेत्रगत पृथ्वी आदि द्रव्यों के होने की अपेक्षा इसे द्रव्योपक्रम कहा जा सकता है, फिर भी क्षेत्रोपक्रम को पृथक् मानने का कारण यह है कि क्षेत्र का अर्थ है आकाश और आकाश अमूर्त है, अत: