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उपक्रमनिरूपण
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८१. से किं तं चउप्पए उवक्कमे ? चउप्पए उवक्कमे चउप्पयाणं आसाणं हत्थीणं इच्चाइ । से तं चउप्पए उवक्कमे । [८१ प्र.] भगवन् ! चतुष्पदोपक्रम का क्या स्वरूप है ? [८१ उ.] आयुष्मन् ! चार पैर वाले अश्व, हाथी आदि पशुओं के उपक्रम को चतुष्पदोपक्रम कहते हैं। ८२. से किं तं अपए उवक्कमे ?
अपए उवक्कमे अपयाणं अंबाणं अंबाडगाणं इच्चाए । से तं अपए उवक्कमे । से तं सचित्तदव्वोवक्कमे । .
[८२ प्र.] भगवन् ! अपद-द्रव्योपक्रम का क्या स्वरूप है ? [८२ उ.] आयुष्मन् ! आम, आम्रातक आदि बिना पैर वालों से सम्बन्धित उपक्रम को अपद-उपक्रम कहते
इस प्रकार से सचित्तद्रव्योपक्रम का स्वरूप जानना चाहिए। विवेचन- इन तीन सूत्रों में सचित्तद्रव्योपक्रम का स्वरूप बतलाया गया है।
सचेतन होने से द्विपद, चतुष्पद और अपद इन तीन में समस्त शरीरधारी जीवों का ग्रहण हो जाने से सचित्तद्रव्योपक्रम के तीन भेद बताये हैं।
द्विपदों, चतुष्पदों और अपदों के रूप में क्रमशः नट आदि मनुष्यों, हाथी आदि चौपायों और आम आदि अपदों (वृक्षों) के नाम सुगमता से बोध कराने के लिए उदाहरण रूप में प्रयुक्त किये हैं।
वस्तु के गुण, शक्तिविशेष की वृद्धि करने के प्रयत्न या उपाय को परिकर्म और वस्तु के विनाश के साधनों तलवार आदि के द्वारा उनको विनष्ट किये जाने के प्रयत्न को वस्तुविनाश उपक्रम कहते हैं।
नट, नर्तक आदि द्विपदों की शारीरिक शक्ति बढ़ाने वाले घृतादि पदार्थों का सेवन रूप प्रयत्नविशेष द्विपद परिकर्म-उपक्रम है और तलवार आदि के द्वारा इन्हीं का विनाश घात करने रूप प्रयत्न—आयोजन वस्तुविनाशउपक्रम कहलाता है।
इसी प्रकार चतुष्पदों और अपदों सम्बन्धी परिकर्म और विनाश विषयक उपक्रमों के लिए भी समझ लेना चाहिए। अचित्तद्रव्योपक्रम
८३. से किं तं अचित्तदव्वोवक्कमे ? अचित्तदव्वोवक्कमे खंडाईणं गुडादीणं मत्स्यंडीणं । से तं अचित्तदव्वोवक्कमे । [८३ प्र.] भगवन् ! अचित्तद्रव्योपक्रम का क्या स्वरूप है ?
[८३ उ.] आयुष्मन् ! खांड (शक्कर), गुड़, मिश्री अथवा राब आदि पदार्थों में उपायविशेष से मधुरता की वृद्धि करने और इनके विनाश करने रूप उपक्रम को अचित्तद्रव्योपक्रम कहते हैं।