SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपक्रमनिरूपण ४९ निक्षेप- नाम, स्थापना आदि के भेद से सूत्रगत पदों का न्यास–व्यवस्थापन करना। अनुगम- सूत्र का अनुकूल अर्थ कहना। नय– अनन्त धर्मात्मक वस्तु के शेष धर्मों को अपेक्षादृष्टि से गौण मानकर मुख्य रूप से एक अंश को ग्रहण करने वाला बोध। उपक्रम आदि का क्रमविन्यास- निक्षेपयोग्यता प्राप्त वस्तु निक्षिप्त होती है और इस योग्य बनाने का कार्य उपक्रम द्वारा होता है। अतः सर्वप्रथम उपक्रम और तदनन्तर निक्षेप का निर्देश किया है। नाम आदि के रूप में निक्षिप्त वस्तु ही अनुगम की विषयभूत बनती है, इसलिए निक्षेप के अनन्तर अनुगम का तथा अनुगम से यु (ज्ञात) हुई वस्तु नयों द्वारा विचारकोटि में आती है, अतएव अनुगम के बाद नय का कथन किया गया है। उपक्रम के भेद और नाम-स्थापना उपक्रम ७६. से किं तं उवक्कमे ? उवक्कमे छव्विहे पण्णत्ते । तं जहा—नामोवक्कमे १ ठवणोवक्कमे २ दव्वोवक्कमे ३ खेत्तोवक्कमे ४ कालोवक्कमे ५ भावोवक्कमे ६ । [७६ प्र.] भगवन् ! उपक्रम का स्वरूप क्या है ? [७६ उ.] आयुष्मन् ! उपक्रम के छह भेद हैं। वे इस प्रकार—१. नाम-उपक्रम, २. स्थापना-उपक्रम, ३. द्रव्य-उपक्रम, ४. क्षेत्र-उपक्रम, ५. काल-उपक्रम, ६. भाव-उपक्रम। ७७. नाम-ठवणाओ गयाओ । [७७] नाम-उपक्रम और स्थापना-उपक्रम का स्वरूप नाम-आवश्यक एवं स्थापना-आवश्यक के समान जानना चाहिए। विवेचन— सूत्रकार ने इन दो सूत्रों में उपक्रम के भेदों के साथ नाम और स्थापना उपक्रम का स्वरूप बतलाया है। किसी चेतन या अचेतन पदार्थ का 'उपक्रम' ऐसा नाम रख लेना नाम-उपक्रम है और किसी पदार्थ में उपक्रम का आरोप करना-उपक्रम रूप से उसे मान लेना स्थापना-उपक्रम कहलाता है। द्रव्य-उपक्रम ७८. से किं तं दव्वोवक्कमे ? दव्वोवक्कमे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा—आगमओ य १ नोआगमओ य २ जाव जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्ते । तं जहा–सचित्ते १ अचित्ते २ मीसए ३ । [७८ प्र.] भगवन् ! द्रव्य-उपक्रम का क्या स्वरूप है ? [७८ उ.] आयुष्मन् ! द्रव्य-उपक्रम दो प्रकार का है—१. आगमद्रव्य-उपक्रम, २. नोआगमद्रव्य-उपक्रम इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य-उपक्रम के तीन प्रकार हैं। वे इस तरह-१. सचित्तद्रव्य-उपक्रम, २. अचित्तद्रव्य-उपक्रम, ३. मिश्रितद्रव्य-उपक्रम।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy