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ज्ञान के पांच प्रकार]
[६१ (६) बुद्धद्वार- एक समय में प्रत्येकबुद्ध १०, स्वयंबुद्ध ४, बुद्धबोधित १०८ सिद्ध हो सकते हैं।
(७) लिङ्गद्वार—एक समय में गृहलिङ्गी चार, अन्यलिङ्गी दस, स्वलिङ्गी एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं।
(८) चारित्रद्वार–सामायिक चारित्र के साथ सूक्ष्मसाम्पराय तथा यथाख्यात चारित्र पालकर एक समय में १०८ तथा छेदोपस्थापना सहित चार चारित्रों का पालन करने वाले भी १०८ और पाँचों की आराधना करने वाले एक समय में १० सिद्ध हो सकते हैं।
(९) ज्ञानद्वार—पूर्वभाव की अपेक्षा से एक समय में मति एवं श्रुतज्ञान के धारक उत्कृष्ट चार, मति श्रुत व मनःपर्यवज्ञान वाले दस, मति, श्रुत, अवधिज्ञानी तथा चार ज्ञान के स्वामी केवलज्ञान प्राप्त करके एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं।
(१०) अवगाहनाद्वार—एक समय में जघन्य अवगाहना वाले उत्कृष्ट चार, मध्यम अवगाहना वाले उत्कृष्ट १०८, उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो सिद्ध हो सकते हैं।
(११) उत्कृष्टद्वार-अनन्तकाल के प्रतिपाती यदि पुनः सम्यक्त्व प्राप्त करें तो एक समय में एक सौ आठ, असंख्यातकाल एवं संख्यातकाल के प्रतिपाती दस-दस। अप्रतिपाती सम्यक्त्वी चार सिद्ध हो सकते हैं।
(१२) अन्तरद्वार—एक समय के अन्तर से अथवा दो, तीन एवं चार समयों का अन्तर पाकर सिद्ध हों। इसी क्रम से आगे समझना चाहिये।
(१३) अनुसमयद्वार—यदि आठ समय पर्यंत निरन्तर सिद्ध होते रहें तो पहले समय में जघन्य एक, दो, तीन, उत्कृष्ट बत्तीस; इसी क्रम में दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, छठे, सातवें और आठवें समय में समझना। फिर नौवें समय में अवश्य अन्तर पड़ता है अर्थात् कोई जीव सिद्ध नहीं होता। ३३ से ४८ निरन्तर सिद्ध हों तो सात समय पर्यन्त हों, आठवें समय में अवश्य अन्तर पड़ जाता है। यदि ४९ से लेकर ६० पर्यन्त निरन्तर सिद्ध हों तो छह समय तक सिद्ध हों, सातवें में अन्तर पड़ जाता है। यदि ६१ से ७२ तक निरन्तर सिद्ध हों तो उत्कृष्ट पाँच समय पर्यन्त ही हों, बाद में निश्चित विरह पड़ जाता है। यदि ७२ से लेकर ८४ पर्यन्त सिद्ध हों तो चार समय तक सिद्ध हो सकते हैं, पाँचवें समय में अवश्य अन्तर पड़ जाता है। यदि ८५ से लेकर ९६ पर्यन्त सिद्ध हों तो तीन समय पर्यन्त हों। यदि ९७ से लेकर १०२ सिद्ध हों तो दो समय तक हों, फिर अन्तर पड़ जाता है। यदि पहले समय में ही १०३ से १०८ सिद्ध हों तो दूसरे समय में अन्तर अवश्य पड़ता है।
(१४) संख्याद्वार—एक समय में जघन्य एक और उत्कृष्ट १०८ सिद्ध हों। (१५) अल्पबहुत्व-पूर्वोक्त प्रकार से ही है।