SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ नन्दीसूत्र (१२) अन्तरद्वार — सिद्ध होने का अन्तरकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास है । छह मास के पश्चात् कोई न कोई जीव सिद्ध होता ही है। ६०] (१३) अनुसमयद्वार — जघन्य दो समय तक और उत्कृष्ट आठ समय तक लगातार सिद्ध होते रहते हैं। आठ समय के पश्चात् अन्तर पड़ जाता है । (१४) संख्याद्वार - जघन्य एक समय में एक और उत्कृष्ट एक सौ आठ सिद्ध होते हैं । इससे अधिक सिद्ध एक समय में नहीं होते । (१५) अल्पबहुत्वद्वार एक समय में दो, तीन आदि सिद्ध होने वाले स्वल्प जीव हैं । एक-एक सिद्ध होने वाले उनसे संख्यात गुणा अधिक हैं । (२) द्रव्यद्वार ( १ ) क्षेत्रद्वार - ऊर्ध्वदिशा में एक समय में चार सिद्ध होते हैं। जैसे—– निषधपर्वत, नन्दनवन, और मेरु आदि के शिखर से चार, नदी नालों से तीन, समुद्र में दो, पण्डकवन में दो, तीस अकर्मभूमि क्षेत्रों में से प्रत्येक में दस-दस, ये सब संहरण की अपेक्षा से हैं। प्रत्येक विजय में जघन्य २०, उत्कृष्ट १०८ । पन्द्रह कर्मभूमि क्षेत्रों में एक समय में उत्कृष्ट १०८ सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं । (२) कालद्वार — अवसर्पिणी काल के तीसरे और चौथे आरे में एक समय में उत्कृष्ट १०८ तथा पाँचवें आरे में २० सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं । उत्सर्पिणी काल के तीसरे और चौथे आरे में भी ऐसा ही समझना चाहिए। शेष सात आरों में संहरण की अपेक्षा एक समय में दस-दस सिद्ध हो सकते हैं। (३) गतिद्वार - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा, इन नरकभूमियों में से निकले हुए एक समय में दस, पंकप्रभा से निकले हुए चार, सामान्य रूप से तिर्यंच से निकले हुए दस, विशेष रूप से पृथ्वीकाय और अप्काय से चार-चार और वनस्पतिकाय से आए छह सिद्ध हो सकते हैं । विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी तिर्यक्पंचेन्द्रिय से निकले हुए जीव सिद्ध नहीं हो सकते । सामान्यतः मनुष्यगति से आए हुए बीस, मनुष्यपुरुषों से निकले हुए दश, मनुष्यस्त्री से बीस । सामान्यतः देवगति से आए हुए एक सौ आठ सिद्ध हों । भवनपति एवं व्यन्तर देवों से दस-दस तथा उनकी देवियों से पाँच-पाँच । ज्योतिष्क देवों से दस, देवियों से बीस और वैमानिक देवों से आए हुए १०८ तथा उनकी देवियों से आए हुए एक समय में बीस सिद्ध हो सकते हैं। (४) वेदद्वार एक समय में स्त्रीवेदी २०, पुरुषवेदी १०८ और नपुंसकवेदी १० सिद्ध हो सकते हैं। पुरुष मरकर पुनः पुरुष बनकर १०८ सिद्ध हो सकते हैं । (५) तीर्थंकरद्वार – एक समय में पुरुष तीर्थंकर चार और स्त्री तीर्थंकर दो सिद्ध हो सकते हैं।
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy