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________________ [ नन्दीसूत्र समाधान——–वस्तुतः अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव में ही है। नारकों और देवों को भी क्षयोपशम से ही अवधिज्ञान होता है, किन्तु उस क्षयोपशम में नारकभव और देवभव प्रधान कारण होता है, अर्थात् इन भवों के निमित्त से नारकों और देवों को अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हो ही जाता है। इस कारण उनका अवधिज्ञान, भवप्रत्यय कहलाता है । यथा— पक्षियों की उड़ानशक्ति जन्म-सिद्ध है, किन्तु मनुष्य बिना वायुयान, जंघाचरण अथवा विद्याचरण लब्धि के गगन में गति नहीं कर सकता । ३२] को भव के कारण से कैसे कहा गया? अवधिज्ञान के छह भेद ९ – अहवा गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिणाणं समुप्पज्जति । तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं तं जहा , (१) आणुगामियं (२) अणाणुगामियं (३) वड्ढमाणयं (४) हायमाणयं (५) पडिवाति ( ६ ) अपडिवाति । ९ – ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूप गुण सम्पन्न मुनि को जो क्षायोपशमिक अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है, वह संक्षेप में छह प्रकार का है, यथा (१) आनुगामिक—– जो साथ चलता है। (२) अनानुगामिक— जो साथ नहीं चलता । (३) वर्द्धमान—– जो वृद्धि पाता जाता 1 (४) हीयमान—– जो क्षीण होता जाता है । (५) प्रतिपातिक — जो एकदम लुप्त हो जाता है । (५) अप्रतिपातिक— जो लुप्त नहीं होता । विवेचन —— मूलगुण और उत्तरगुणों से सम्पन्न अनगार को जो अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उसके छह प्रकार संक्षिप्त में कहे गए हैं (१) आनुगामिक— जैसे चलते हुए पुरुष के साथ नेत्र, सूर्य के साथ आतप तथा चन्द्र के साथ चांदनी बनी रहती है, इसी प्रकार आनुगामिक अवधिज्ञान भी जहां कहीं अवधिज्ञानी जाता है, उसके साथ विद्यमान रहता है, साथ-साथ जाता है। (२) अनानुगामिक—जो साथ न चलता हो किन्तु जिस स्थान पर उत्पन्न हुआ हो उसी स्थान पर स्थित होकर पदार्थों को देख सकता हो, वह अनानुगामिक अवधिज्ञान कहलाता है। जैसे दीपक जहाँ स्थित हो वहीं वह प्रकाश प्रदान करता है पर किसी भी प्राणी के साथ नहीं चलता । यह ज्ञान क्षेत्ररूप बाह्य निमित्त से उत्पन्न होता है, अतएव ज्ञानी जब अन्यत्र जाता है तब वह क्षेत्ररूप निमित्त नहीं रहता, इस कारण वह लुप्त हो जाता है। 1
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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