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ज्ञान के पांच प्रकार ]
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(३) वर्द्धमानक—– जैसे-जैसे अग्नि में ईंधन डाला जाता है वैसे-वैसे वह अधिकाधिक वृद्धिंगत होती है तथा उसका प्रकाश भी बढ़ता जाता है। इसी प्रकार ज्यों-ज्यों परिणामों में विशुद्धि बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों अवधिज्ञान भी वृद्धिप्राप्त होता जाता है। इसीलिए इसे वर्द्धमानक अवधिज्ञान कहते हैं।
(४) हीयमानक जिस प्रकार ईंधन की निरन्तर कमी से अग्नि प्रतिक्षण मन्द होती जाती है, उसी प्रकार संक्लिष्ट परिणामों के बढ़ते जाने पर अवधिज्ञान भी हीन, हीनतर एवं हीनतम होता चला जाता है ।
(५) प्रतिपातिक – जिस प्रकार तेल के न रहने पर दीपक प्रकाश देकर सर्वथा बुझ जाता है, उसी प्रकार प्रतिपातिक अवधिज्ञान भी दीपक के समान ही युगपत् नष्ट हो जाता है ।
( ६ ) अप्रतिपातिक— जो अवधिज्ञान, केवलज्ञान उत्पन्न होने से पूर्व नहीं जाता है अर्थात् पतनशील नहीं होता इसे अप्रतिपातिक कहते हैं ।
आनुगामिक अवधिज्ञान
१० – से किं तं आणुगामियं ओहिणाणं ?
आणुगामियं ओहिणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा— अंतगयं च मज्झगयं च ।
से किं तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं तं जहा—
(१) पुरओ अंतगयं ( २ ) मग्गओ अंतगयं ( ३ ) पासतो अंतगयं ।
से किं तं पुरतो अंतगयं ? पुरतो अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा जोइं वा पईवं वा पुरओ काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छेज्जा, सेत्तं पुरओ अंतगयं ।
से किं तं मग्गओ अंतगयं ? से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोइं वा मग्गओ काउं अणुकड्ढेमाणे अणुकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से तं मग्गओ अंतगयं ।
से किं तं पासओ अंतगयं ? पासओ अन्तगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चिडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोइं वा पासओ काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से तं पासओ अंतगयं । से त्तं अन्तगयं ।
से किं तं मज्झगयं ? से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोईं वा मत्थए काउं गछेज्जा। से त्तं मज्झगयं ।
१०- - शिष्य ने प्रश्न किया—— भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है? गुरु ने उत्तर दिया –—–— आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का है, यथा— (१) अन्तगत (२)
मध्यगत।