SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [३१ ५-शिष्य के द्वारा प्रश्न किया गया—भगवन् ! बिना इन्द्रिय एवं मन आदि बाह्य निमित्त की सहायता के साक्षात् आत्मा से होने वाला नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष क्या है ? उत्तर—नोइन्द्रियज्ञान तीन प्रकार का हैं—(१) अवधिज्ञानप्रत्यक्ष (२) मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष (३) केवलज्ञानप्रत्यक्ष। ६-से किं तं ओहिणाणपच्चक्खं ? ओहिणाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा- -भवपच्चतियं च खओवसमियं च। ६–प्रश्न—भगवन्! अवधिज्ञान प्रत्यक्ष क्या है? उत्तर—अवधिज्ञान के दो भेद हैं—(१) भवप्रत्ययिक (२) क्षायोपशमिक। ७-दोण्हं भवपच्चतियं, तं जहा–देवाणं च रतियाणं च। ७—प्रश्न—भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान किन्हें होता है? उत्तर-भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान देवों एवं नारकों को होता है। ८—दोण्हं खओवसमियं, तं जहा—मणुस्साणं च पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं च। को हेऊ खाओवसमियं ? तयावरणिजाणं कम्माणं उदिण्णाणं खएणं, अणुदिण्णाणं उवसमेणं ओहिणाणं समुप्पज्जति। ८–प्रश्न—भगवन्! क्षायोपशमिक अवधिज्ञान किनको होता है? उत्तर—क्षायोपशमिक अवधिज्ञान दो को होता है—मनुष्यों को तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों को होता है। शिष्य ने पुनः प्रश्न किया भगवन् ! क्षायोपशमिक अवधिज्ञान की उत्पत्ति का हेतु क्या है? गुरुदेव ने उत्तर दिया जो कर्म अवधिज्ञान में रुकावट उत्पन्न करने वाले (अवधिज्ञानावरणीय) हैं, उनमें से उदयगत का क्षय होने से तथा अनुदित कर्मों का उपशम होने से जो उत्पन्न होता है, वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहलाता है। विवेचन मन और इन्द्रियों की सहायता के बिना उत्पन्न होने वाले नोइन्द्रिय-प्रत्यक्षज्ञान के तीन भेद बताए गए हैं—अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान एवं केवलज्ञान। अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक एवं क्षायोपशमिक, इस प्रकार दो तरह का होता है। भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान जन्म लेते ही प्रकट होता है, जिसके लिए संयम, तप अथवा अनुष्ठानादि की आवश्यकता नहीं होती किन्तु क्षायोपशमिक अवधिज्ञान इन सभी की सहायता से उत्पन्न होता है। अवधिज्ञान के स्वामी चारों गति के जीव होते हैं। भवप्रत्यय अवधिज्ञान देवों और नारकों को तथा क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों को होता है। उसे 'गुणप्रत्यय' भी कहते हैं। शंका की जाती है—अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव में परिगणित है तो फिर नारकों और देवों
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy