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________________ २०] _[नन्दीसूत्र (९) जलौका—जिस प्रकार जलौका अर्थात् जौंक मनुष्य के शरीर में फोड़े आदि से पीड़ित स्थान पर लगाने से वहां के दूषित रक्त को ही पीती है, शुद्ध रक्त को नहीं, इसी प्रकार कुबुद्धि श्रोता आचार्य आदि के सद्गुणों को व आगम ज्ञान को छोड़कर दुर्गुणों को ग्रहण करते हैं। ऐसे व्यक्ति श्रुतज्ञान के अधिकारी नहीं होते। (१०) विडाली—बिल्ली स्वभावतः दूध दही आदि पदार्थों को पात्र से नीचे गिराकर चाटती है अर्थात् धूलियुक्त पदार्थों का आहार करती है। इसी तरह कई एक श्रोता गुरु से साक्षात् ज्ञान नहीं लेते, किन्तु इधर-उधर से सुन सुनाकर अथवा पढ़कर सत्यासत्य का भेद समझे बिना ही ग्रहण करते रहते हैं। वे श्रोता बिल्ली के समान होते हैं और श्रुतज्ञान के पात्र नहीं होते। (११) जाहक-एक जानवर है। दूध-दही आदि खाद्य पदार्थ जहां है, वहीं पहुंच कर वह थोड़ा-थोड़ा खाता है और बीच-बीच में अपनी बगलें चाटता जाता है। इसी प्रकार जो शिष्य पूर्वगृहीत सूत्रार्थ को पक्का करके नवीन सूत्रार्थ ग्रहण करते हैं वे श्रोता जाहक के समान आगम ज्ञान के अधिकारी होते हैं (१२) गौ-का उदाहरण इस प्रकार है--किसी यजमान ने चार ब्राह्मणों को एक दुधारू गाय दान में दी। उन चारों ने गाय को न कभी घास दिया न पानी पिलाया, यह सोचकर कि यह मेरे अकेले की तो है नहीं। वे दूध दोहने के लिए पात्र लेकर आ धमकते थे। आखिर भूखी कब तक दूध देती और जीवित रहती ? परिणामस्वरूप भूख-प्यास से पीड़ित गाय ने एक दिन दम तोड़ दिया। ___ ठीक इसी प्रकार के कोई-कोई श्रोता होते हैं, जो सोचते हैं कि गुरुजी मेरे अकेले के तो हैं नहीं फिर क्यों मैं उनकी सेवा करूं? ऐसा सोच कर वे गुरुदेव की सेवा तो करते नहीं हैं और उपदेश सुनने व ज्ञान सीखने के लिए तत्पर हो जाते हैं। वे श्रुतज्ञान के अधिकारी नहीं हैं। इसके विपरीत दूसरा उदाहरण है—एक श्रेष्ठी (सेठ) ने चार ब्राह्मणों को एक ही गाय दी। वे बड़ी तन्मयता से उसे दाना-पानी देते, उसकी सेवा करते और उससे खूब दूध प्राप्त करके प्रसन्न होते। ___ इसी प्रकार विनीत श्रोता गुरु को सेवा द्वारा प्रसन्न करके ज्ञानरूपी दुग्ध ग्रहण करते हैं। वे वास्तव में ज्ञान के अधिकारी हैं और रत्नत्रय की आराधना करके अजर-अमर हो सकते हैं। (१३) भेरी–एक समय सौधर्माधिपति ने अपनी देवसभा में प्रशंसा के शब्दों में श्रीकृष्ण की दो विशेषताएं बताईं—एक गुण-ग्राहकता और दूसरी नीच युद्ध से परे रहना। एक देव उनकी परीक्षा लेने के विचार से मध्यलोक में आया। उसने सड़े हुए काले कुत्ते का रूप बनाया और जिस रास्ते से कष्ण जाने वाले थे. उसी रास्ते पर मतकवत पड गया। उसके शरीर से तीव्र दुर्गन्ध आ रही थी। उसी राज-पथ से श्रीकृष्ण भगवान् अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ निकले। कुत्ते के शरीर की असह्य दुर्गन्ध से सारी सेना घबरा उठी और द्रुतगति से पथ बदलकर आगे बढ़ने लगी। किन्तु श्रीकृष्ण ने औदारिक देह का स्वभाव समझ कर बिना घृणा किए, कुत्ते को देखकर कहा—'देखो तो सही, इस कुत्ते के काले शरीर में सफेद, स्वच्छ और चमकीले दांत कितने सुन्दर
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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