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________________ श्रोताओं के विविध प्रकार] [१९ पुराने घड़े भी दो प्रकार के होते हैं—एक पानी डाला हुआ और एक बिना पानी डाला हुआ—कोरा। इसी प्रकार के श्रोता होते हैं जो युवावस्था होने पर मिथ्यात्व के कलिमल से लिप्त या अलिप्त होते हैं। जो अलिप्त हैं, ऐसे व्यक्ति ही योग्य श्रोता कहलाते हैं। जो अन्य वस्तुओं से वासित हो गये हैं, ऐसे घड़े भी दो प्रकार के होते हैं—सुगन्धित पदार्थों से वासित और दुर्गन्धित पदार्थों से वासित। इसी तरह श्रोता भी दो प्रकार के होते हैं। कोई सम्यग् ज्ञानादि गुणों से परिपूर्ण तथा दूसरे क्रोधादि कषायों से युक्त। ____ अर्थात् जिन श्रोताओं ने मिथ्यात्व, विषय, कषाय के संस्कारों को छोड़ दिया है, वे श्रुतज्ञान के अधिकारी हैं, और जिन्होंने कुसंस्कारों को नहीं छोड़ा, वे अनधिकारी हैं। (३) चालनी–जो श्रोता उत्तमोत्तम उपदेश व श्रुतज्ञान सुनकर तुरन्त ही भुला देते हैं, जैसे चालनी में डाला हुआ पानी निकल जाता है। अथवा चालनी सार-सार को छोड़ देती है, निस्सार (तूसों को) अपने अन्दर धारण कर रखती है, वैसे ही अयोग्य श्रोता गुणों को छोड़कर अवगुणों को ही ग्रहण करते हैं। वे चालनी के समान श्रोता अयोग्य हैं। (४) परिपूर्णक—जिससे दूध, पानी आदि पदार्थ छाने जाते हैं, वह छन्ना कहलाता है। वह भी सार को छोड देता है और कडा-कचरा अपने में रख लेता है। इसी प्रकार जो श्रोता अच्छाइयों को छोड़कर बुराइयों को ग्रहण करते हैं, वे श्रुत के अनधिकारी हैं। (५) हंस हंस के समान जो श्रोता केवल गुणग्राही होते हैं, वे श्रुतज्ञान के अधिकारी होते हैं। पक्षियों में हंस श्रेष्ठ माना जाता है। यह पक्षी प्रायः जलाशय : मानसरोवर, गंगा आदि के किनारे रहता है। इस पक्षी की यह विशेषता है कि मिश्रित दूध और पानी में से भी यह दुग्धांश को ही ग्रहण करता है। (६) मेष-मेढ़ा या बकरी का स्वभाव अगले दोनों घुटने टेककर स्वच्छ जल पीने का है। वे पानी को गन्दा नहीं करते। इसी प्रकार जो श्रोता शास्त्रश्रवण करते समय एकाग्रचित्त रहते हैं, और गुरु को प्रसन्न रखते हैं, वातावरण को मलीन नहीं बनाते, वे शास्त्र-श्रवण के अधिकारी और सुपात्र होते हैं। (७) महिष—सा जलाशय में घुसकर स्वच्छ पानी को गन्दा बना देता है और जल में मूत्र-गोबर भी कर देता है। वह न तो स्वयं स्वच्छ पानी पीता है और न अपने साथियों को स्वच्छ जल पीने देता है। इसी प्रकार कुछेक श्रोता भैंसे के तुल्य होते हैं। जब आचार्य भगवान् शास्त्रवाचना दे रहे हों, उस समय न तो स्वयं एकाग्रता से सुनते हैं, न दूसरों को सुनने देते हैं। वे हँसीमश्करी, कानाफूसी, कुतर्क तथा वितण्डावाद में पड़कर अमूल्य समय नष्ट करते हैं। ऐसे श्रोता श्रुतज्ञान के अधिकारी नहीं हैं। (८) मशक-डाँस-मच्छरों का स्वभाव मधुर राग सुनाकर शरीर पर डंक मारने का है। वैसे ही जो श्रोतागण गुरु की निन्दा करके उन्हें कष्ट पहुंचाते हैं, वे अविनीत होते हैं। वे अयोग्य
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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