SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभाव और परिश्रम से सम्पूर्ण आगमों का प्रकाशन संभव हो सका तो समस्त स्थानकवासी जैनसमाज के लिए महान् गौरव का विषय सिद्ध होगा। प्रस्तुत संस्करण की अपनी विशेषताएं हैं—शुद्ध मूल पाठ, भावार्थ और फिर विवेचन। विवेचन न बहुत लम्बा है, और न बहुत संक्षिप्त ही। विवेचन में नियुक्ति, चूर्णि और संस्कृत टीकाओं का आधार लिया गया है। विषय गम्भीर होने पर भी व्याख्याकार ने उसे सरल एवं सरस बनाने का भरसक प्रयास किया है। विवेचन, सरल, सम्पादन सुन्दर और प्रकाशन आकर्षक है। अत: विवेचक, सम्पादक एवं प्रकाशक-तीनों धन्यवाद के पात्र हैं। नन्दीसूत्र का स्वाध्याय केवल साध्वी-साधु ही नहीं करते, श्राविका-श्रावक भी करते हैं । नन्दी के स्वाध्याय से जीवन में आनन्द तथा मंगल की अमृत वर्षा होती है। ज्ञान के स्वाध्याय से ज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम भी होता है। फिर ज्ञान की अभिवृद्धि होती है। ज्ञान निर्मल होता है । दर्शन विशुद्ध बनता है। चारित्र निर्दोष हो जाता है। तीनों की पूर्णता से निर्वाण का महा लाभ मिलता है। यही है नन्दीसूत्र के स्वाध्याय की फलश्रुति। यह सूत्र अपने रचनाकाल से ही समाज में अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। श्रमण संघ के भावी आचार्य पण्डित प्रवर मधुकरजी महाराज की सम्पादकता से एवं संरक्षकता में आगम प्रकाशन का जो एक महान कार्य हो रहा है. वह वस्ततः प्रशंसनीय है। पूज्य अमोलकऋषिजी महाराज के आगम अत्यन्त संक्षिप्त थे. और आज वे उपलब्ध भी नहीं होते। पूज्य घासीलालजी महाराज के आगम अत्यन्त विस्तृत हैं, सामान्य पाठक की पहुंच से परे है। श्री मधुकरजी के आगम नूतन शैली में, नूतन भाषा में और नूतन परिवेश में प्रकाशित हो रहे हैं। यह एक महान् हर्ष का विषय है। नन्दीसूत्र की व्याख्या एक साध्वी की लेखनी से हो रही है, यह एक और भी महान् प्रमोद का विषय है। साध्वीरत्न, महाविदुषी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' जी स्थानकवासी समाज में चिरविश्रुता हैं। नन्दीसूत्र का लेखन उनकी कीर्ति को अधिक व्यापक तथा समुज्ज्वल करेगा—इसमें जरा भी संदेह नहीं। 'अर्चना' जी संस्कृत भाषा एवं प्राकृत भाषा की विदुषी तो हैं ही, लेकिन उन्होंने आगमों का भी गहन अध्ययन किया है, यह तथ्य इस लेखन से सिद्ध हो जाता है। मुझे आशा है, कि अनागत में वे अन्य आगमों की व्याख्या भी प्रस्तुत करेंगी। पण्डित प्रवर शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने इस सम्पादन में पूरा सहयोग दिया है। सब के प्रयास का ही यह एक सुन्दर परिणाम समाज के सामने आया है। 000 (३०)
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy