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________________ घ्राणेन्द्रिय-प्रत्यक्ष, ४. जिह्वेन्द्रिय-प्रत्यक्ष, ५. स्पर्शेन्द्रिय-प्रत्यक्ष । नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष क्या है? नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष तीन प्रकार का है—१. अवधिज्ञान-प्रत्यक्ष, २. मन:पर्ययज्ञान-प्रत्यक्ष, ३. केवलज्ञान-प्रत्यक्ष। संक्षेप में नन्दीसूत्र में ये ही विषय हैं । वस्तुतः मुख्य विषय पञ्चज्ञान-वाद ही है। आगमिक पद्धति से यह प्रमाण का ही निरूपण है। जैन-दर्शन ज्ञान को प्रमाण मानता है, उसका विषय विभाजन तथा प्रतिपादन दो पद्धतियों से किया गया है—आगमिक-पद्धति और तर्क-पद्धति। नन्दीसूत्र में, आवश्यकनियुक्ति में और विशेषावश्यक भाष्य में ज्ञानवाद का अत्यन्त विस्तार से वर्णन किया गया है। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु, नन्दी-सूत्रकार देववाचक और भाष्यकार जिनभद्र क्षमाश्रमण आगमिक परम्परा के प्रसिद्ध एवं समर्थ व्याख्याकार रहे हैं। ____ आगमों में नन्दीसूत्र की परिगणना दो प्रकार से की जाती है—मूल सूत्रों में तथा चूलिका सूत्रों में। स्थानकवासी परम्परा की मान्यतानुसार मूल सूत्र चार हैं—उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोगद्वार । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र को चूलिका सूत्र स्वीकार करती है। ये दोनों आगम समस्त आगमों में चूलिका रूप रहे हैं। दोनों की रचना अत्यन्त सुन्दर, सरस एवं व्यवस्थित है। विषय-निरूपण भी अत्यन्त गम्भीर है। भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से भी दोनों का आगमों में अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान है। व्याख्या-साहित्य आगमों के गम्भीर भावों को समझने के लिए आचार्यों ने समय-समय पर जो व्याख्या-ग्रन्थ लिखे हैं, वे हैं—नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका । इस विषय में, मैं पीछे लिख आया हूँ। नन्दीसूत्र पर नियुक्ति एवं भाष्य—दोनों में से एक भी आज उपलब्ध नहीं है। चूर्णि एवं अनेक संस्कृत टीकाएँ आज उपलब्ध हैं। चूर्णि बहुत विस्तृत नहीं है। आचार्य हरिभद्र कृत संस्कृत टीका, चूर्णि का ही अनुगमन करती है। आचार्य मलयगिरि कृत नन्दी टीका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । गम्भीर भावों को समझने के लिए इससे सुन्दर अन्य कोई व्याख्या नहीं है। आचार्य आत्मारामजी महाराज ने नन्दीसूत्र की हिन्दी भाषा में एक सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है। आचार्य हस्तीमलजी महाराज ने भी नन्दीसूत्र की हिन्दी व्याख्या प्रस्तुत की है। आचार्य घासीलालजी महाराज ने नन्दीसूत्र की संस्कृत, हिन्दी और गुजराती में सुन्दर व्याख्या की है। प्रस्तुत सम्पादन नन्दीसूत्र का यह सुन्दर संस्करण ब्यावर से प्रकाशित आगम-ग्रन्थमाला की लड़ी की एक कड़ी है। अल्प काल में ही वहाँ से एक के बाद एक यों अनेक आगम प्रकाशित हो चुके हैं। आचारांगसूत्र दो भागों में तथा सूत्रकृतांगसूत्र भी दो भागों में प्रकाशित हो चुका है। ज्ञातासूत्र, उपासकदशांगसूत्र अन्तकृद्दशांगसूत्र । अनुत्तरोपपातिकसूत्र और विपाकसूत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। नन्दीसूत्र आप के समक्ष है। युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म.'मधुकर' ने आगमों का अधुनातन बोली में नवसंस्करण करने की जो विशाल योजना अपने हाथों में ली है, वह सचमुच एक भगीरथ कार्य है। यह कार्य जहाँ उनकी दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प और आगमों के प्रति अगाधभक्ति का सबल प्रतीक है, वहाँ साथ ही श्रमण संघ के युवाचार्यश्रीजी की अमर कीर्ति का कारण भी बनेगा। वे मेरे पुराने स्नेही मित्र हैं। उनका स्वभाव मधुर है व समाज को जोड़कर, कार्य करने की उनकी अच्छी क्षमता है। उनके ज्ञान, (२९)
SR No.003467
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_nandisutra
File Size17 MB
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